Friday, June, 27,2025

दान सभी धर्मों में... हिंदुओं में भी मोक्ष की अवधारणाः सीजेआई

नई दिल्ली: वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को तीन दिन चली सुनवाई पूरी हो गई। मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने फैसला सुरक्षित रख लिया।

याचिकाकर्ताओं ने इस कानून को मुसलमानों के धार्मिक अधिकारों और समानता के अधिकार के विरुद्ध बताया है और उस पर अंतरिम रोक लगाने की मांग की। वक्फ की अवधारणा पर बहस के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि यह ईश्वर के लिए समर्पण है, जो इस्लामी सिद्धांतों में 'परलोक' से जुड़ा हुआ है।

इस पर प्रतिक्रिया देते हुए सीजेआई गवई ने कहा कि 'दान' का सिद्धांत सभी धर्मों में पाया जाता है, जैसे कि हिंदू धर्म में 'मोक्ष' की चाह या ईसाई धर्म में 'स्वर्ग' की अवधारणा। 

'पांच वर्षों की प्रैक्टिसिंग मुस्लिम' की शर्त कोई असंवैधानिक नहीं

तीन दिन चली बहस के दौरान केंद्र ने यह भी कहा कि अधिसूचित जनजातीय क्षेत्रों में वक्फ की मनाही का प्रावधान जनजातीय समुदायों के अधिकारों की रक्षा के लिए है। केंद्र सरकार की ओर से सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कानून का बचाव करते हुए दलील दी कि वक्फ एक इस्लामी परंपरा जरूर है लेकिन यह इस्लाम का अनिवार्य धार्मिक हिस्सा नहीं है, इसलिए इसे संविधान के तहत मौलिक अधिकार के रूप में नहीं देखा जा सकता। मेहता ने यह भी स्पष्ट किया कि नए संशोधन में वक्फ करने वाले व्यक्ति के लिए 'पांच वर्षों की प्रैक्टिसिंग मुस्लिम' होने की शर्त कोई असंवैधानिक प्रावधान नहीं है, बल्कि यह शरिया कानून की तर्ज पर है, जहां पर्सनल लॉ के लाभ के लिए व्यक्ति को मुस्लिम होने का घोषणापत्र देना होता है।

शरिया कानून को मानना अनिवार्य नहीं

वहीं, याचिकाकर्ता पक्ष के वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी ने इस तर्क का विरोध किया। सिंघवी ने कहा कि शरिया कानून को मानना अनिवार्य नहीं है और उसमें भी पांच साल की प्रैक्टिसिंग मुस्लिम होने की कोई शर्त नहीं है। उन्होंने कहा कि यह कानून अनुच्छेद 15 का उल्लंघन करता है, क्योंकि अन्य धर्मों के दान या ट्रस्ट संबंधी कानूनों में ऐसी कोई शर्त नहीं लगाई गई है। सुप्रीम कोर्ट अब उपयुक्त समय पर इस संवेदनशील और संवैधानिक महत्व के मामले में अपना निर्णय सुनाएगा। सभी पक्ष अब न्यायालय के निर्णय की प्रतीक्षा कर रहे हैं, जो वक्फ कानून के भविष्य की दिशा तय करेगा।

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