Friday, June, 27,2025

सीजेआई ने खींची लक्ष्मण रेखा... राहत के लिए लाइए मजबूत दलीलें

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को वक्फ संशोधन कानून 2025 की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की। भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) भूषण रामकृष्ण गवई की अध्यक्षता वाली दो सदस्यीय पीठ ने सुनवाई की, जिसमें न्यायमूर्ति ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह भी शामिल थे। सुनवाई के दौरान CII गवई ने संसद द्वारा पारित कानूनों की संवैधानिकता को लेकर महत्वपूर्ण टिप्पणी की। उन्होंने कहा, किसी भी कानून को संसद से पारित होने के बाद एक संवैधानिक धारणा प्राप्त होती है। जब तक उस कानून के खिलाफ कोई ठोस और पुख्ता मामला सामने नहीं आता, तब तक अदालतों को उसमें हस्तक्षेप करने की आवश्यकता नहीं है।

तीन मुख्य बिंदुओं पर सुनवाई सीमित हो:  केन्द्र केन्द्रः केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया कि याचिकाओं की सुनवाई को को तीन मुख्य बिंदुओं तक सीमित रखा जाए। इनमें कोर्ट, यूजर और डीड द्वारा घोषित वक्फ संपत्तियों को डि-नोटिफाई करने के वक्फ बोर्ड के अधिकार का मुद्दा भी शामिल है। केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने यह मांग रखी।

याचिकाकर्ताओं ने जताई आपत्तिः हालांकि, याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ताओं कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी ने इस पर आपत्ति जताई। उन्होंने तर्क दिया कि, किसी भी अहम कानून पर टुकड़ों में बहस नहीं हो सकती। सिब्बल ने कहा कि यह संशोधन संविधान के अनुच्छेद 25 का उल्लंघन करता है, जो नागरिकों को धर्म के पालन, प्रचार और अभ्यास की स्वतंत्रता देता है।

बिटकॉइन ट्रेड हवाला जैसा अवैध कारोबार

सुप्रीम कोर्ट ने बिटकॉइन ट्रेडिंग को हवाला की तरह अवैध कारोबार करार देते हुए इस पर गहरी चिंता जताई। जस्टिस सूर्यकांत और एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि क्रिप्टोकरेंसी के लिए एक समानांतर अवैध बाजार खड़ा हो गया है, जो देश की अर्थव्यवस्था को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है। पीठ ने केंद्र सरकार से सवाल किया कि आखिर वह क्रिप्टोकरेंसी को रेगुलेट करने के लिए स्पष्ट नीति क्यों नहीं बना रही है। कोर्ट ने कहा कि क्रिप्टोकरेंसी पर नियंत्रण रखकर सरकार इसके लेन-देन पर निगरानी रख सकती है और इसके दुरुपयोग को रोका जा सकता है। कोर्ट ने केंद्र की ओर से पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल से कहा कि दो साल पहले भी सरकार से क्रिप्टो नीति पर स्पष्टता मांगी गई थी, लेकिन अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।

न्यायिक सेवा में तीन साल की प्रैक्टिस जरूरी

उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया कि विधि स्नातक होते ही युवा अब न्यायिक सेवा परीक्षा में शामिल नहीं हो सकते। सुप्रीम कोर्ट की प्रधान न्यायाधीश बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि सिविल न्यायाधीश जैसे प्रवेश स्तर के पदों के लिए न्यूनतम तीन वर्ष की वकालत अनिवार्य होगी। सुप्रीम कोर्ट ने 23 साल पुराने नियम को बदल दिया। यह फैसला अखिल भारतीय न्यायाधीश संघ की याचिका पर सुनाया गया। पीठ ने कहा कि नए स्नातकों को सीधे नियुक्त करने से न्यायिक प्रणाली में कई व्यावहारिक चुनौतियां आई हैं, जिसे विभिन्न उच्च न्यायालयों ने भी रेखांकित किया है। अदालत ने दोहराया कि न्यायिक दक्षता और क्षमता के लिए अदालत का व्यावहारिक अनुभव बेहद जरूरी है।

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