Friday, June, 27,2025

मध्यस्थता फैसलों को अदालतें कर सकती हैं संशोधितः SC

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि अदालतें 1996 के मध्यस्थता और सुलह कानून के तहत मध्यस्थता फैसलों को संशोधित कर सकती हैं। प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायाधीश बी आर गवई, न्यायाधीश संजय कुमार और न्यायाधीश ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह ने एक के मुकाबले चार के बहुमत से फैसला सुनाते हुए कहा कि कुछ परिस्थितियों में मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 के प्रावधानों का इस्तेमाल करके मध्यस्थता निर्णय को संशोधित किया जा सकता है। यह फैसला वाणिज्यिक विवादों में घरेलू और अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता फैसलों को प्रभावित करेगा।

यह कहता है अनुच्छेद 142

संविधान का अनुच्छेद 142 सुप्रीम कोर्ट को उसके समक्ष लंबित किसी भी मामले या मामले में पूर्ण न्याय करने के लिए आवश्यक कोई भी आदेश पारित करने का अधिकार देता है। यह विवेकाधीन शक्ति न्यायालय को सख्त कानूनी आवश्यकताओं से आगे जाकर उन स्थितियों में न्याय सुनिश्चित करने की अनुमति देती है जहां मौजूदा कानून अपर्याप्त या अपूर्ण हो सकते हैं। अदालत ने तीन दिन तक पक्षों की सुनवाई के बाद 19 फरवरी को कानूनी मुद्दे पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

न्यायाधीश विश्वनाथन ने जताई असहमति

न्यायाधीश के वी विश्वनाथन ने असहमति जताते हुए कहा कि अदालतें मध्यस्थता के फैसलों में बदलाव नहीं कर सकतीं। बहुमत के फैसले में उन परिस्थितियों का उल्लेख किया गया है जिनमें न्यायालयों द्वारा मध्यस्थता संबंधी निर्णयों को संशोधित करने के सीमित अधिकार का प्रयोग किया जा सकता है। बहुमत के फैसले में कहा गया कि इस अधिकार का प्रयोग 'कुछ परिस्थितियों में निर्णय के बाद के हित को संशोधित करने' के लिए किया जा सकता है।

सावधानी से किया जाए अनुच्छेद 142 की ताकत का इस्तेमाल

फैसला सुनाते हुए, प्रधान न्यायाधीश ने अदालतों को मध्यस्थता फैसलों को संशोधित करने में सावधानी बरतने का आदेश दिया। उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट की विशेष शक्तियों का इस्तेमाल फैसलों में बदलाव के लिए किया जा सकता है। लेकिन इस शक्ति का इस्तेमाल संविधान के दायरे में बहुत सावधानी से किया जाना चाहिए।

दिव्यांगों के लिए हो समावेशी केवाईसी प्रक्रिया: SC

सुप्रीम कोर्ट ने समावेशिता के अधिकारों को बरकरार रखते हुए बुधवार को डिजिटल केवाईसी दिशा-निर्देशों में बदलाव का निर्देश दिया ताकि दृष्टिबाधित और तेजाब हमले के पीड़ितों को बैंकिंग सेवाओं और कल्याणकारी योजनाओं समेत अन्य सेवाओं तक पहुंच मिल सके। न्यायाधीश जे बी पारदीवाला और न्यायाधीश आर महादेवन की पीठ ने आरबीआई के अलावा केंद्र और उसके विभागों को 20 महत्वपूर्ण निर्देश दिए। पीठ ने कहा कि डिजिटल विभाजन को पाटना अब केवल नीतिगत विवेक का मामला नहीं रह गया है, बल्कि यह सम्मानजनक जीवन, स्वायत्तता में समान भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए संवैधानिक अनिवार्यता है।

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