Friday, June, 27,2025

भामाशाहों को दान देने के लिए अब करना होगा शर्तों का सामना

जयपुर: प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में मरीजों को इलाज के लिए तो जूझना पड़ता ही है, अब वहीं दानदाताओं को दान देने के लिए भी परेशान होना पड़ेगा। चिकित्सा विभाग ने सरकारी अस्पतालों में दान स्वीकार करने के लिए नई एसओपी जारी की है। इसके अनुसार अब किसी भी सामाजिक संस्था, दानदाता या जनप्रतिनिधि को उपकरण या वाहन दान करने से पहले कई शतों और जिम्मेदारियों को पूरा करना होगा। उधर, प्रमुख शासन सचिव चिकित्सा एवं स्वास्थ्य गायत्री राठौड़ ने इस एसओपी को जारी करते हुए दान प्रक्रिया को पारदर्शी और प्रभावी बनाने का दावा किया है। उनका कहना है कि इससे दान की गई सामग्री का अधिकतम उपयोग किया जा सकेगा, जबकि इससे जुड़ी सख्त शतों ने कई सवाल भी खड़े कर दिए हैं। इन सख्त नियमों को लेकर दानदाताओं और विशेषज्ञों में चर्चा शुरू हो गई है कि सरकारी अस्पतालों में सुविधाएं बढ़ाने के लिए दानदाताओं को प्रेरित किया जाता है, लेकिन ये नियम दान देने की प्रक्रिया को और जटिल बनाएंगे।

डीएसी तय करेगी दान स्वीकार्य है या नहीं

नई एसओपी के अनुसार प्रत्येक सरकारी अस्पताल में एक दान स्वीकार्यता समिति का गठन किया जाएगा, जो दान की सामग्री की स्वीकृति और उपयोगिता का मूल्यांकन करेगी। एसओपी में यह भी स्पष्ट किया गया है कि दान में दी जाने वाली सामग्री, जैसे प्रयोगशाला उपकरण, मुख्यमंत्री निशुल्क जांच योजना के तहत स्वीकृत सूची में शामिल होनी चाहिए। इसके अलावा, उपकरणों को संचालित करने के लिए संबंधित चिकित्सक या तकनीकी कर्मचारी का पद संस्थान में स्वीकृत होना आवश्यक है। यदि दान में वाहन शामिल है, तो उसके कागजात, फिटनेस प्रमाण पत्र, बीमा और पांच साल के रखरखाव, चालक और ईथन के खर्च की जिम्मेदारी भी दानदाता को लेनी होगी।

दान की सूचना एक सप्ताह में जिला और मुख्यालय को देना जरूरी

एसओपी के तहत विधायक/सांसद निधि कोष से प्राप्त उपकरणों के लिए राजस्थान पारदर्शिता लोक नीलामी अधिनियम का पालन अनिवार्य होगा। दान में कोई शर्त, व्यावसायिक उद्देश्य या निजी स्वार्थ नहीं होना चाहिए। उपकरणों की गुणवत्ता और प्रमाणन की जांच के लिए संबंधित जोन के बायोमेडिकल इंजीनियर की विशेषज्ञ राय ली जाएगी। दान की गई सामग्री को संस्थान की संपत्ति रजिस्टर में दर्ज करना होगा और इसकी सूचना एक सप्ताह के भीतर जिला और मुख्यालय को देनी होगी। अनावश्यक या निष्क्रिय सामग्री को स्वीकार नहीं किया जाएगा।

नए नियमों से दानदाता असमंजस में

चिकित्सा विभाग का दावा है कि इससे पारदर्शिता बढ़ेगी और अस्पतालों को केवल वही सामग्री प्राप्त होगी, जो वास्तव में उनके काम आएगी, लेकिन दूसरी ओर कई सामाजिक संस्थाओं और छोटे दानदाताओं ने इस पर असहमति जताई है। मित्राय बी ह्यूमन फाउंडेशन के फाउंडर डॉ. विनीत शर्मा और रश्मि शर्मा ने बताया कि समाज में दान की परिपाटी स्वैच्छिक है। इस तरह के नियम दानदाताओं के लिए सही नहीं हैं। यदि कोई सरकारी अस्पताल में उपकरण रहता है तो अस्पताल को उसका
उपयोग करना चाहिए। दानदाता को शर्तों पर बांधना उचित नहीं है। सरकारी अस्पतालों में कोई उपकरण दान देता है तो अस्पताल की अनदेखी से वह दो-तीन सालों में कबाड़ हो जाती है, जबकि प्राइवेट अस्पतालों में यह पांच साल तक चलती है।

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