Friday, June, 27,2025

नालों में दम तोड़ती जिंदगियां जिम्मेदार अब भी खामोश !

जयपुर: नगर निगम ग्रेटर और । जयपुर नगर निगम ग्रेटर और हेरिटेज मानसून से पहले नालों की सफाई के लिए इस वर्ष करीब 15 से 20 करोड़ रुपए की अनुमानित राशि खर्च करेगा। यह राशि नालों की मरम्मत, गाद हटाने और सफाई कार्यों पर खर्च की जाएगी। पिछले वर्ष भी जयपुर ग्रेटर में लगभग 10 करोड़ और हेरिटेज में 7 करोड़ रुपए की लागत से नाला सफाई कार्य किया गया था, लेकिन नाला सफाई की तैयारियों के बीच मजदूरों की सुरक्षा को लेकर अभी भी गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। वह भी ऐसे समय में, जब हाल ही में जयपुर के सीतापुरा औद्योगिक क्षेत्र में सीवरेज टैंक की सफाई के दौरान हुए हादसे में चार मजदूरों ने अपनी जान गंवा दी थी। इसके अलावा प्रदेश में सीवरेज और नालों की सफाई के दौरान दम घुटने से दर्जनों मजदूरों की मौत की घटनाएं सामने आ चुकी हैं। इसके बावजूद जयपुर नगर निगम ग्रेटर और हेरिटेज में मजदूर बिना पर्याप्त सुरक्षा उपकरणों के नालों में उतरकर सफाई कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट से लेकर मानवाधिकार आयोग तक इस मामले में पहले ही संज्ञान लेते हुए नाला सफाई के दौरान मजदूरों की सुरक्षा के लिए सख्त दिशा-निर्देश जारी कर चुके हैं, लेकिन उनका पालन नहीं हो रहा।

मशीन लाखों की और मजदूर 500 में

जयपुर में नाले में उतरकर काम कर रहे एक सफाईकर्मी ने बताया कि मशीन 50 लाख से लेकर 2 करोड रुपए तक की आती है, वहीं मजदूर 500 रुपए में मिल जाता है। ठेकेदार पैसा बचाते हैं। हमारी मजबूरी है। ठेकेदार कहता है छोटे नालों में मशीन नहीं लगेगी। वहीं कोई उपकरण भी उपलब्ध नहीं करवाता है। सिर्फ मजदूरी देता है, उसमें भी परमानेंट काम नहीं मिलता है। मजबूरी में ठेकेदार जो कहता है, वैसा करना पड़ता है।

5 साल तक की सजा का प्रावधान

'मैनुअल स्कैवेंजर्स के नियोजन और उनके पुनर्वास का निषेध अधिनियम' के तहत मैनुअल स्कैवेजिंग कराने पर 5 साल तक की सजा का प्रावधान है। इसके बावजूद, राजस्थान में हालिया घटनाएं दर्शाती हैं कि इस कानून का प्रभावी क्रियान्वयन नहीं हो पा रहा है।

मैनुअल स्कैवेंजिंग पर प्रतिबंध के बावजूद काम जारी

राजधानी जयपुर के सीतापुरा में सफाई के दौरान हुए हादसे में चार मजदूरों ने अपनी जान गंवा दी थी। इस पर पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सवाल खड़े किए और कहा था कि हाल ही में सफाई करते हुए 11 लोगों की मौत हो चुकी है। वहीं 23 मई को राजस्थान हाईकोर्ट ने प्रदेश में बिना उपकरण मैन्युअल तरीके से सीवरेज चैंबर की सफाई के चलते आए दिन हो रही सफाई कर्मचारियों की मौत के मामले में स्वायत्त शासन सचिव, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता सचिव और राजस्थान सफाई कर्मचारी आयोग से जवाब-तलब किया था। वहीं, हर मौत के बाद राज्य मानवाधिकार आयोग भी स्वप्रेरणा से संज्ञान लेकर स्थानीय कलेक्टर, पुलिस अधीक्षक और घटना से जुड़े संस्थानों के जिम्मेदारों से जवाब मांग चुका है।

प्रशासन की चुप्पी, मजदूरों का जीवन खतरे में

जयपुर के एक सफाई कर्मचारी यूनियन नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि सफाई के लिए मशीनें उपलब्ध नहीं हैं और मजदूरों को बिना सुरक्षा उपकरणों के काम करने को मजबूर किया जा रहा है। प्रशासन और ठेकेदार लागत कम करने के चक्कर में मजदूरों की जान जोखिम में डाल रहे हैं।

क्या कहते हैं दिशा-निर्देश?

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) और सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के अनुसार, नाला और सीवर सफाई के दौरान मजदूरों को मास्क, ऑक्सीजन सिलेंडर, सुरक्षात्मक गियर और मशीनों का उपयोग अनिवार्य रूप से करना चाहिए। मैनुअल स्कैवेजिंग (हाथ से सफाई) पर पूर्ण प्रतिबंध है और मशीनों के उपयोग को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। इसके बावजूद, जयपुर में कई स्थानों पर मजदूरों को नालों में उतरते देखा जा रहा है, जो नियमों का खुला उल्लंघन है।

बिल पास, फिर भी नालों में उतर रहे मजदूर

'प्रोहिबिशन ऑफ एम्प्लॉयमेंट ऑफ मैनुअल स्कैवेंजर्स एंड देयर रिहैबिलिटेशन बिल 2012' लोकसभा में लाया गया था। इसके बाद सितंबर 2013 में यह बिल लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों में पास हुआ। इसके अनुसार, किसी से मैनुअल स्कैवेजिंग कराने पर 5 साल तक की सजा का प्रावधान है। इस अधिनियम के अनुसार, मैनुअल स्कैवेंजिंग के लिए किसी को काम पर नहीं रखा जा सकता। इसके बावजूद, जयपुर नगर निगम ग्रेटर में वर्तमान में चल रही नालों की सफाई के लिए मजदूर अब भी नालों में उतरकर मैनुअल सफाई कर रहे हैं।

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