Thursday, June, 26,2025

नेहरू की जिद से गया कश्मीर मुखर्जी ने राष्ट्र के लिए दी जान

जयपुर: 'संकल्प से सिद्धि तक' अभियान के तहत भाजपा ने सोमवार को प्रदेशभर में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को याद किया। भाजपा कार्यकर्ताओं ने मंडल, जिला और प्रदेश स्तर पर संगोष्ठी, जनसभा, वाद-संवाद कार्यक्रम आयोजित किए। मुखर्जी के बलिदान दिवस पर पार्टी ने जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर कांग्रेस को घेरने का प्रयास किया। जयपुर स्थित प्रदेश भाजपा कार्यालय में भी संगोष्ठी हुई।

इस अवसर पर भाजपा प्रदेशाध्यक्ष मदन राठौड़ मुखर्जी के बलिदान को याद करते हुए भावुक हो गए। उन्होंने कहा कि भारतीय जनसंघ के संस्थापक डॉ. मुखर्जी का जीवन और भारत के निर्माण में योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है। आज जहां हम खड़े हैं, वह मुखर्जी की देन है।

राठौड़ ने पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की राजनीति पर सवाल उठाते हुए कहा कि कश्मीर में पाकिस्तान समर्थित कबायली हमले के दौरान महाराजा हरि सिंह भारत में विलय के इच्छुक थे, लेकिन नेहरू ने समय पर निर्णय नहीं लिया, जिसके कारण आधा कश्मीर पाकिस्तान के कब्जे में चला गया। डॉ. मुखर्जी इस अन्याय को स्वीकार नहीं कर सके और उन्होंने 'एक देश, एक विधान, एक प्रधान' का नारा देकर इसका विरोध किया।

इस अवसर पर मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा, भाजपा प्रदेशाध्यक्ष मदन राठौड़, उप मुख्यमंत्री दीया कुमारी, प्रेमचंद बैरवा, कैबिनेट मंत्री कर्नल राज्यवर्धन राठौड़, पूर्व प्रदेशाध्यक्ष अशोक परनामी, अरुण चतुर्वेदी, कार्यक्रम संयोजक नाहर सिंह जोधा, जिलाध्यक्ष अमित गोयल, विधायक गोपाल शर्मा, बालमुकुंदाचार्य, कैलाश वर्मा, संभाग संयोजक शैलेन्द्र भार्गव, जिला संयोजक संजय जैन, रवि नैय्यर, चंद्रमोहन बटवाड़ा सहित पार्टी के विधायक, पदाधिकारी और कार्यकर्ता उपस्थित रहे। इस दौरान सभी ने डॉ. मुखर्जी को श्रद्धांजलि अर्पित की।

भावुक हुए मदन राठौड़

राठौड़ ने भावुक होते हुए कहा कि डॉ. मुखर्जी के लगाए हुए पौधे को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने सींचा और आज वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में वटवृक्ष बन गया है। मोदी ने धारा 370 हटाकर कश्मीर को भारत का पूर्ण अंग बना दिया, जो डॉ. मुखर्जी को सच्ची श्रद्धांजलि है। उन्होंने आह्वान किया कि वे मुखर्जी के विचारों को जन-जन तक पहुंचाएं।

राष्ट्रहित पर हावी थे नेहरू के रिश्ते

राठौड़ ने कहा कि नेहरू सरकार निरंकुश थी और शेख अब्दुल्ला से उनके व्यक्तिगत रिश्ते राष्ट्रहित पर भारी पड़ गए। विरोध की आवाज को दबा दिया गया। डॉ. मुखर्जी ने सत्य और राष्ट्रहित के लिए मंत्री पद तक त्याग दिया। जनसंघ की स्थापना डॉ. मुखर्जी ने पं. दीनदयाल उपाध्याय और अटल बिहारी वाजपेयी के साथ मिलकर की थी। जनसंघ ने पहले ही चुनाव में 3 सांसद और 23 विधायक जीतकर राजनीतिक विकल्प के रूप में पहचान बनाई। कश्मीर में भारतीय नागरिकों को बिना अनुमति प्रवेश न मिलने की व्यवस्था को डॉ. मुखर्जी ने स्वीकार नहीं किया। उन्होंने बिना अनुमति कश्मीर जाने का संकल्प लिया और 23 जून, 1953 को उनकी संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु हो गई। पिछली सरकारों ने आज तक मामले की जांच नहीं करवाई।

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