Friday, June, 27,2025

सदस्यता रद्द न करना संविधान के खिलाफ था: गहलोत

जयपुर: राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने शुक्रवार को जोधपुर में प्रदेश की भाजपा सरकार पर तीखा हमला बोलते हुए आरोप लगाया कि प्रदेश समस्याओं से घिरा हुआ है, लेकिन सरकार कोई समाधान करने का प्रयास नहीं कर रही है। उन्होंने कहा कि चाहे भाजपा की सरकार हो या कांग्रेस की, समस्याएं तो रहती हैं, लेकिन जनता को यह महसूस होना चाहिए कि सरकार उनके लिए काम कर रही है। उन्होंने वर्तमान सरकार की निष्क्रियता पर सवाल उठाते हुए कहा कि जनता के हित में कोई ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे। गहलोत ने विधानसभा अध्यक्ष पर निष्पक्षता की कमी का आरोप लगाते हुए कहा कि कंवरलाल मीणा की सजा के बावजूद उनकी सदस्यता रद्द न करना संवैधानिक व्यवस्था के खिलाफ था।

उन्होंने कहा कि कंवरलाल की सदस्यता समाप्त करने में देरी का कोई तुक नहीं था, जबकि आरपीए के कानून के तहत सजा सुनाते ही सदस्यता समाप्त करने का आदेश सुप्रीम कोर्ट का है। इसके बावजूद स्पीकर ने देरी क्यों की? गहलोत ने कहा कि हर व्यक्ति को कानून का पालन करना चाहिए। बीस साल पुराने केस में तीन साल की सजा पर सदस्यता समाप्त हो गई। एसआई भर्ती पर गहलोत ने कहा कि मामला न्यायालय में विचाराधीन है, इसलिए इस पर कोई टिप्पणी करना उचित नहीं होगा। वहीं कांग्रेस नेताओं ने इस मामले को संविधान और लोकतंत्र की रक्षा की लड़ाई बताया।

जूली-डोटासरा ने उठाए विधानसभा अध्यक्ष पर सवाल

नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली और कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी पर कंवरलाल मीणा की सदस्यता रद्द करने में देरी का आरोप लगाया। जूली ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के लिली थॉमस मामले के फैसले के अनुसार दो साल या उससे अधिक की सजा होने पर जनप्रतिनिधि की सदस्यता स्वतः समाप्त हो जाती है। फिर भी कोर्ट के आदेश के 23 दिन बाद तक कोई कार्रवाई नहीं की गई, जो संविधान और न्याय व्यवस्था की अवहेलना है। जूली ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, सत्यमेव जयते। कांग्रेस के सतत संघर्ष और कोर्ट में अवमानना याचिका दायर करने के बाद कंवरलाल मीणा की सदस्यता रद्द हुई। यह लोकतंत्र और संविधान की मर्यादा की जीत है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने तीन बार विधानसभा अध्यक्ष और एक बार राज्यपाल को ज्ञापन सौंपा, फिर भी भाजपा सरकार ने टालमटोल की नीति अपनाई। आखिरकार, हाई कोर्ट में याचिका दायर करने और आगामी दिनों में होने वाली सुनवाई के दबाव में यह निर्णय लिया गया। वहीं, पीसीसी चीफ डोटासरा ने इसे संवैधानिक प्रावधानों की अवहेलना बताया और कहा कि कांग्रेस के दबाव और सुप्रीम कोर्ट में 'कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट' याचिका के बाद यह फैसला हुआ। उन्होंने कहा कि देश में कानून और संविधान सर्वोपरि हैं।

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