Thursday, June, 26,2025

मोदी ने ट्रंप को नहीं, पहले भारत को चुना

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कनाडा के कनानैस्किस में आयोजित 51वीं जी-7 शिखर बैठक में भागीदारी भारत के वैश्विक नेतृत्व सफर का एक निर्णायक क्षण साबित हुई। विभिन्न आउटरीच सत्रों में सक्रिय भागीदारी करते हुए मोदी ने ग्लोबल साउथ की आवाज को मजबूती से उठाया। उन्होंने समावेशी ऊर्जा, जिम्मेदार आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और जलवायु न्याय जैसे मुद्दों को प्रमुखता से रखा। प्रधानमंत्री मोदी ने स्पष्ट कहा कि लोकतंत्रों को आज की वैश्विक चुनौतियों, खासकर आतंकवाद के विरुद्ध एकजुट होना होगा। उन्होंने कहा, "इस विषय पर कोई अस्पष्टता नहीं होनी चाहिए, यदि कोई देश आतंकवाद का समर्थन करता है, तो उसे जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए।" मोदी ने यह भी कहा कि जैसे अन्य मामलों में प्रतिबंध (sanctions) लगाने में तत्परता दिखाई जाती है, वैसे ही आतंकवाद पर भी कठोर रुख अपनाना चाहिए। इस अवसर पर भारत और कनाडा के प्रधानमंत्रियों ने अपने उच्चायुक्तों की बहाली की दिशा में ठोस कदम बढ़ाए, जो द्विपक्षीय संबंधों को फिर से मजबूती देने का संकेत है। इस समिट का एक विशेष क्षण तब आया, जब इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी ने प्रधानमंत्री मोदी से कहा, "यू आर द बेस्ट" (आप सबसे बेहतरीन हैं), जिससे भारत-इटली संबंधों की गर्मजोशी साफ झलकी।

इसके साथ ही प्रधानमंत्री मोदी ने यूरोपीय कमीशन की अध्यक्ष उर्सला वॉन डेर लेयेन और फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के साथ भी संवाद कर भारत-यूरोप के आर्थिक और तकनीकी सहयोग को पुनः सजीव किया। हालांकि इसी दिन का सबसे चर्चित और विवादास्पद घटनाक्रम बाद में सामने आया, जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पाकिस्तान के सेना प्रमुख फील्ड मार्शल असीम मनीर को व्हाइट हाउस में निजी लंच के लिए आमंत्रित किया। यह कदम भारत की गंभीर चिंता का विषय बना। भारत ने तुरंत ट्रंप के उस दावे को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने कहा था कि मई में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्धविराम में अमेरिका की मध्यस्थता थी। भारत ने स्पष्ट किया कि यह  पूरी तरह से सैन्य स्तर की प्रत्यक्ष कूटनीति का परिणाम था। प्रधानमंत्री मोदी ने ट्रंप को फोन कर भारत की स्थिति स्पष्ट की और यह दोहराया कि भारत द्विपक्षीय मामलों में किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को स्वीकार नहीं करता। मोदी ने आतंकवाद को 'युद्ध के बराबर' करार देते हुए यह भी साफ कर दिया कि जो देश आतंकवाद को पालते हैं या उसका समर्थन करते हैं, उनसे मित्रता की कोई गुंजाइश नहीं। प्रधानमंत्री मोदी ने उर्सी दिन आमने-सामने की मुलाकात के लिए अमरीका आने के ट्रंप के प्रस्ताव को भी अस्वीकार कर दिया। ट्रंप ने मोदी को अमरीका आने का न्यौता ऐसे समय दिया था, जब उन्होंने पाकिस्तानी सेना प्रमुख को व्हाइट हाउस में आमंत्रित कर रखा था। यह मोदी का एक सधा हुआ, रणनीतिक संकेत था कि जो देश आतंकवाद के शिकार हैं, वे उन देशों से मित्रता नहीं रख सकते जो उसे बढ़ावा देते हैं या जिनकी नीतियों में आतंकवाद एक उपकरण की तरह शामिल है।

प्रधानमंत्री मोदी ने स्पष्ट शब्दों में कहा, "आतंकवाद मानवता का शत्रु है और उन सभी देशों के लिए खतरा है जो लोकतांत्रिक मूल्यों में विश्वास करते हैं। यदि कोई देश आतंकवाद को समर्थन देता है, तो उसे जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए।" उन्होंने आगे कहा, "जैसे हम अन्य विषयों पर तुरंत प्रतिबंध लगाते हैं, वैसे ही आतंकवाद के मसले पर भी त्वरित कार्रवाई होनी चाहिए।" उनका यह इनकार न केवल भारत की प्राथमिकताओं के प्रति सम्मान को दर्शाता है, बल्कि यह भी संदेश देता है कि जब बात 1.4 अरब भारतीयों के हितों की हो, तो व्यक्तिगत संबंधों से पहले सिद्धांत आता है। उसी शाम प्रधानमंत्री मोदी क्रोएशिया रवाना हुए। यह यात्रा भारत के यूरोप आउटरीच के लिए एक महत्वपूर्ण पहल मानी जा रही है। इस पूरे घटनाक्रम में दुनिया ने यह स्पष्ट देखा कि भारत का नेतृत्व राष्ट्रीय गरिमा के साथ कोई समझौता नहीं करता, भले ही उससे व्यक्तिगत संबंधों में तनाव क्यों न आ जाए। प्रधानमंत्री मोदी की जी-7 में भागीदारी ने यह साबित कर दिया कि भारत आज वैश्विक मंच पर एक गंभीर, सिद्धांत आधारित राष्ट्र है जो सार्वभौमिक मूल्यों का रक्षक है, आत्मसम्मान से समझौता नहीं करता और जब जरूरत पड़े, तो मित्रता से पहले देशहित को चुनता है।

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