Thursday, June, 26,2025

अमेरिकी बमबारी से बढ़ी भारत की चुनौती

अमेरिका की ओर से ईरान अ के परमाणु ठिकानों पर बमबारी करने से पश्चिम एशिया में तनाव अप्रत्याशित रूप से बढ़ गया है। भारत के इजराइल और ईरान दोनों के साथ गहरे संबंध हैं। इसलिए भारत चाहकर भी इस संघर्ष से पूरी तरह से मुंह नहीं मोड़ सकता और न ही इजराइल या ईरान इस कठिन समय में भारत से ही उम्मीद छोड़ने की स्थिति में हैं।

भारत के लिए क्यों अहम हैं इजराइल-ईरान

  • इजराइल के साथ प्रगाढ सैन्य रिश्ते
  • भारत के इजराइल के साथ बेहद अच्छे संबंध हैं। दोनों देशों के बीच रक्षा, खुफिया जानकारी और तकनीक का आदान-प्रदान होता है।
  • उन्नत सैन्य तकनीक का विश्वसनीय स्रोत है इजराइल

ईरानः ऊर्जा सुरक्षा में अहम सहयोगी

  • ईरान भारत ऊर्जा सुरक्षा का एक अहम स्रोत। बड़ी मात्रा में पेट्रोलियम और गैस का आयात करता है।
  • ईरान के चाबहार बंदरगाह को भारत संचालित करता है। इसमें भारत ने बहुत बड़ा निवेश भी कर रखा है।
  • चाबहार बंदरगाह भारत के लिए मध्य एशिया और अफगानिस्तान तक पहुंचने का एक महत्वपूर्ण रास्ता है।

IMEEC खतरे में

क्षेत्र में अस्थिरता से भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (आईएमईईसी) भी खतरे में पड़ सकता है। यह एक महत्वपूर्ण परियोजना है, जो चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का मुकाबला करने के लिए जरूरी है।

क्या है भारत की पश्चिम एशिया नीति ?

भारत हमेशा से पश्चिम एशिया को लेकर सतर्क रहा है। उसने 'मल्टी-एलाइनमेंट' की नीति का पालन किया है। इसका मतलब है कि उसने इजराइल, ईरान, खाड़ी देशों और अमेरिका जैसे परस्पर प्रतिद्वंद्वी देशों के साथ संबंध बनाए रखे हैं।

क्यों है भारत के लिए चुनौतीपूर्ण स्थिति ?

खाड़ी और मध्य पूर्व में भारत के 80 लाख से ज्यादा नागरिक रहते हैं। उनकी सुरक्षा सबसे जरूरी है। भारत पहले ही ईरान से 1,400 से ज्यादा छात्रों को निकाल चुका है। उसे इजराइल से भी ऐसा करना पड़ रहा है। संघर्ष का विस्तार होने पर भारत की ऊर्जा सुरक्षा भी खतरे में पड जाएगी। भारत अपनी जरूरत का लगभग 60 प्रतिशत कच्चा तेल इसी क्षेत्र से आयात करता है। यही स्थिति गैस के साथ भी है। अगर स्थिति और बिगड़ती है, खासकर अगर ईरान यदि होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद कर दे तो तेल की आपूर्ति बाधित हो सकती है। इससे कीमतें बढ़ सकती हैं। भारत में महंगाई आ सकती है।

एक लाख टन चावल बंदरगाहों पर अटका

इजराइल-ईरान संघर्ष के कारण ईरान जाने वाला लगभग 1,00,000 टन बासमती चावल भारतीय बंदरगाहों पर फंसा हुआ है। अखिल भारतीय चावल निर्यातक संघ के अध्यक्ष सतीश गोयल ने सोमवार को कहा कि भारत के कुल बासमती चावल निर्यात में ईरान की 18-20 प्रतिशत की हिस्सेदारी है। गोयल ने बताया कि निर्यात खेप मुख्य रूप से गुजरात के कांडला और मुंद्रा बंदरगाहों पर रुकी है, जहां पश्चिम एशिया संघर्ष के कारण ईरान जाने वाले माल के लिए न तो जहाज उपलब्ध हैं और न ही बीमा। उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय संघर्ष, आमतौर पर मानक शिपिंग बीमा पॉलिसियों के तहत कवर नहीं होते हैं, जिससे निर्यातक अपनी खेप भेजने में असमर्थ हैं। ज्ञात रहे कि सऊदी अरब के बाद ईरान भारत का दूसरा सबसे बड़ा बासमती चावल बाजार है। भारत ने मार्च में समाप्त हुए वित्त वर्ष 2024-25 के दौरान ईरान को लगभग 10 लाख टन सुगंधित अनाज का निर्यात किया। कंटेट: सच बेधड़क डेस्क

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