Friday, June, 27,2025

मैं भारत के नागरिक के रूप में पैदा हुआ, अछूत नहीं: गवई

लंदन: भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) बी आर गवई ने कहा है कि हाशिये पर पड़े समुदायों के प्रतिनिधि आज भारत के कुछ सर्वोच्च संवैधानिक पदों पर आसीन हैं, जो डॉ. बी. आर. अंबेडकर के समानता, स्वतंत्रता, न्याय और बंधुत्व के दृष्टिकोण के अनुरूप है। उन्होंने कहा, मेरा जन्म डॉ. अंबेडकर के हमें छोड़कर जाने के लगभग चार साल बाद 1960 में हुआ था। मैं भारत के नागरिक के रूप में पैदा हुआ था, न कि अछूत के रूप में। डॉ. अंबेडकर की उपस्थिति हमेशा मेरे घर में महसूस की जाती थी।' सीजेआई गवई ने लंदन के ऐतिहासिक 'ग्रेज इन' में भारतीय संविधान के 75 वर्ष पूरे होने के अवसर पर एक विशेष व्याख्यान में संविधान निर्माता के रूप में डॉ. अंबेडकर की स्थायी विरासत पर प्रकाश डाला। अंबेडकर ने एक सदी से भी पहले 'ग्रेज इन' से ही बैरिस्टर की उपाधि प्राप्त की थी।

सीजेआई गवई ने कहा कि आधुनिक इतिहास के सबसे महान विधि विशेषज्ञों में से एक (डॉ. आंबेडकर) की विरासत पर विचार करना उनके लिए 'अविश्वसनीय रूप से भावनात्मक क्षण' है। उन्होंने कहा कि उनके (सीजेआई के) खुद के कॅरिअर में भी इनका गहरा असर रहा है। सीजेआई ने कहा कि इस ऐतिहासिक संस्थान में खड़े होकर, मुझे डॉ. बी.आर.अंबेडकर द्वारा छोड़ी गई स्थायी विरासत की याद आती है, जो केवल कानूनी क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि भारतीय लोकतंत्र की बुनियाद में भी है। उन्होंने कहा कि प्रत्येक नागरिक को संवैधानिक संरक्षण का पूरा लाभ प्राप्त होने से संबंधित डॉ. अंबेडकर का समाज के लिए दृष्टिकोण न्यायपालिका, कानून और कार्यकारी आदेशों के माध्यम से लगातार साकार हो रहा है।

राष्ट्रपति आदिवासी पृष्ठभूमि से

सीजेआई गवई ने कहा, यह गर्व की बात है कि देश ने पिछले 75 वर्षों में दो महिला राष्ट्रपति देखे हैं और अब हमारे पास एक ऐसी महिला राष्ट्रपति (द्रौपदी मुर्मू) हैं, जो आदिवासी क्षेत्र के समाज के सबसे हाशिये पर पड़े वर्गों का प्रतिनिधित्व करती हैं। मुझे यह कहते हुए गर्व होता है कि भारत के पास एक प्रधान न्यायाधीश भी है, जो हाशिये पर पड़े वर्गों और विनम्र पृष्ठभूमि से आता है।

मेघवाल ने अंबेडकर की अंतर्दृष्टि साझा की

विधि और न्याय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने 1922 में 'ग्रेज इन' बार में बुलाए जाने से पहले लंदन में कानून के एक युवा छात्र के रूप में अंबेडकर के जीवन से कुछ व्यक्तिगत अंतर्दृष्टि साझा की। उन्होंने कहा कि अंबेडकर के पास पैसे नहीं होते थे और वह अक्सर भोजन छोड़ देते थे और बहुत कम नींद लेकर काम चलाते थे, यह उनकी प्रतिबद्धता थी। उन्होंने संविधान को दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के लिए एक 'महान दस्तावेज' बताया। यह कार्यक्रम लंदन में भारतीय उच्चायोग के सहयोग से आयोजित किया गया था और इसमें इंग्लैंड में कानून के छात्र के रूप में आंबेडकर के जीवन की अभिलेखीय झलकियां भी पेश की गई।

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