Friday, June, 27,2025

जस्टिस वर्मा का कदाचार साबित... पद से हटाया जाए

नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट के तत्कालीन न्यायाधीश यशवंत वर्मा के सरकारी आवास से जले नोटों की कथित बरामदगी की जांच
कर रही समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि न्यायाधीश बर्मा और उनके परिवार के सदस्यों का उस स्टोर रूम पर 'गुप्त या
सक्रिय नियंत्रण' था, जहां से बड़ी मात्रा में अधजली नकदी मिली थी। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इससे न्यायाधीश वर्मा के कदाचार का पता चलता है, जो इतना गंभीर है कि उन्हें हटाया जाना चाहिए। ज्ञात रहे कि यह मामला सामने आने के बाद
न्यायाधीश वर्मा का तबादला इलाहबाद हाई कोर्ट में कर दिया गया था।

पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश शील नागू की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय समिति ने 10 दिनों तक मामले की पड़ताल की, 55 गवाहों से पूछताछ को और वर्मा के आधिकारिक आवास पर 14 मार्च को रात करीब 11.35 बजे लगी आग के परिप्रेक्ष्य में घटनास्थल का दौरा भी किया।

जांच समिति ने 64-पृष्ठ की अपनी रिपोर्ट में कहा है, समिति का मानना है कि नकद राशि राष्ट्रीय राजधानी के 30 तुगलक क्रीमेंट स्थिति आवास के भंडार कक्ष में पाई गई थी, जो आधिकारिक तौर पर न्यायाधीश वर्मा के कब्जे में था। सशक्त, अनुमानात्मक साक्ष्य के माध्यम से यह स्थापित होता है कि जले हुए नोट 15 मार्च 2025 को तड़के 30 तुगलक क्रीसेंट स्थित आवास के भंडार कक्ष से निकाले गए थे।

रिपोर्ट के अनुसार रिकॉर्ड पर मौजूद प्रत्यक्ष और इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए, यह समिति दृढ़ता से इस बात पर सहमत है कि भारत के प्रधान न्यायाधीश के 22 मार्च के पत्र में वर्णित आरोपों में पर्याप्त तथ्य हैं और कदाचार साबित पाया गया है। यह कदाचार इतना गंभीर है कि न्यायाधीश वर्मा को हटाने की कार्यवाही शुरू करने की आवश्यकता है।

समिति ने न्यायाधीश वर्मा और 55 गवाहों के बयानों का गहन विश्लेषण किया तथा आंतरिक समिति द्वारा निर्धारित जांच प्रक्रिया के तहत अपने निष्कर्ष प्रस्तुत किए।

न्यायाधीश की ईमानदारी का पैमाना सिविल पदधारक से अधिक कठोर

न्यायाधीश वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव की सिफारिश करते हुए समिति ने कहा है, इस संबंध में कोई भी कमी जनता के विश्वास को खत्म कर सकती है, जिसे सख्ती से देखा जाना चाहिए। न्यायाधीश की ईमानदारी को ऐसे पैमाने से मापा जाता है जो सिविल पदधारक से अपेक्षित ईमानदारी से कहीं अधिक कठोर होता है। जब उच्चतर न्यायपालिका के कार्यालय सवालों के घेरे में होते हैं तो ईमानदारी का तत्व "प्रमुख, प्रासंगिक और अपरिहार्य हो जाता है। रिपोर्ट में कहा कि न्यायिक कार्यालय का अस्तित्व आम नागरिकों के विश्वास पर आधारित है और इस विश्वास की गुणवत्ता न्यायाधीश द्वारा न केवल न्यायालय के अंदर बल्कि बाहर प्रदर्शित व्यवहार और आचरण से जुड़ी होती है। तीन सदस्यीय समिति में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस शील नागू, हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के सीजे जीएस संधावालिया और कर्नाटक हाईकोर्ट की जस्टिस अनु शिवरामन शामिल थे।

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