Monday, December, 15,2025

मनुष्य की आत्मा भावनाओं से पुष्ट होती है, तकनीक से नहीं

जयपुर: राजस्थान साहित्य अकादमी, पिंकसिटी प्रेस क्लब और पीपुल्स मीडिया थिएटर की ओर से तीन दिवसीय पिंकसिटी लिटरेचर फेस्टिवल का शुभारंभ हुआ। वरिष्ठ कवि, लेखक और गांधीवादी चिंतक नंदकिशोर आचार्य ने कार्यक्रम का आगाज किया और कहा कि हिंदी में साहित्यिक महोत्सव आयोजित करना स्वयं में एक सांस्कृतिक दायित्व है, एक ऐसा दायित्व जो आज के समय में और भी महत्वपूर्ण हो गया है। उन्होंने कहा कि साहित्य मनुष्य की स्वयं को परखने की प्रक्रिया है। आत्म की खोज ही साहित्य का मूल बीज है। वरिष्ठ संपादक ओम थानवी ने साहित्यिक आयोजनों को समाज की जीवन्तता का परिचायक बताया। उन्होंने कहा कि साहित्य के साथ अन्य कलाओं को जोड़ना आयोजन की मौलिक उपलब्धि है। उन्होंने साहित्यिक परिदृश्य में फैलती गुटबाजी और एक तरह के जातिवाद पर खेद जताते हुए कहा कि वैचारिक भिन्नता के बावजूद भी श्रेष्ठ लेखन संभव है, बल्कि यहीं से नए स्वर उत्पन्न होते हैं।

लोग वही पढ़ते हैं, जो उन्हें अच्छा लगता है

फेस्टिवल में 'नई पीढ़ी क्या पढ़‌ना चाहती है?' विषय पर सत्र में वरिष्ठ लेखक डॉ. दुर्गाप्रसाद अग्रवाल ने कहा कि यह धारणा पूरी तरह गलत है कि आज की जेन-जी पीढ़ी पढ़ती नहीं। उनके पढ़ने के माध्यम बदल गए हैं। ई-बुक्स, किंडल, ऑडियो बुक्स और पीडकास्ट ने पढ़ने को नई दिशा दी है। संपादक और लेखक यशवंत व्यास ने कहा कि आज पढ़ने की स्वतंत्र संस्कृति है। लोग वहीं पढ़ते हैं, जो उन्हें अच्छा लगता है। पत्रकार त्रिभुवन ने कहा कि युवा पीढ़ी को लेकर धारणाए अक्सर पूर्वाग्रहग्रस्त होती हैं। वरिष्ठ साहित्यकार सुबोध गोविल ने कहा कि हम नई पीढ़ी को वहीं पढ़ाना चाहते हैं, जो हम पढ़ चुके हैं, जबकि हमें उन्हें नया पढ़ने देने की स्वतंत्रता देनी चाहिए। 'लोकतंत्र और समकालीन पत्रकारिता' पर सत्र में वरिष्ठ पत्रकार नाराचण बारेठ, हरिदेव जोशी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. एन. के. पांडेय, दैनिक भास्कर के संपादक तरुण शर्मा, पत्रकार अंकिता शर्मा और गरिमा श्रीवास्तव के बीच संवाद हुआ।

विचारों के टकराव से ही होता है बौद्धिक क्रांति का जन्म

फर्स्ट इंडिया न्यूज के सीईओ एंड मैनेजिंग एडिटर पवन अरोड़ा ने साहित्य को समाज की आत्मा बताया। उन्होंने कहा कि विचारों के टकराव से ही बौद्धिक क्रांति जन्म लेती है। शब्द मनुष्य की सबसे बड़ी शक्ति है और महोत्सव उसी शक्ति की पहचान का अवसर है। उन्होंने कहा कि मनुष्य की आत्मा भावनाओं से पुष्ट होती है, तकनीक से नहीं और पत्रकारिता के क्षेत्र में युवाओं के लिए साहित्य एक नया दृष्टिकोण और आलोचनात्मक विवेक विकसित करता है। कथक गुरु प्रेरणा श्रीमाली ने कला और संस्कृति के क्षरण पर गहरी चिंता जताई। उन्होंने कहा कि आज हम ऐसे दौर में हैं, जहां नैतिक मूल्य लगभग विलुप्त हो रहे हैं और धैर्य झीण होता जा रहा है। फेस्टिवल निदेशक अशोक राही ने प्रश्न से बात शुरू की कि क्या सचमुच समाज को अभी भी साहित्य की आवश्यकता है? उन्होंने कहा कि मनुष्य का सबसे बड़ा आविष्कार भाषा है, पर आज के समय में तेजी से नष्ट होता तत्व विचार है।

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