Thursday, December, 18,2025

अटल राष्ट्रपति बनने को नहीं हुए राजी, कलाम का नाम किया आगे

नई दिल्ली: भारत के ग्यारहवें राष्ट्रपति उम्मीदवार के लिए एपीजे अब्दुल कलाम के नाम पर विचार करने से पहले भाजपा के भीतर से यह सुझाव आया था कि अटल बिहारी वाजपेयी राष्ट्रपति पद ग्रहण कर लें तथा प्रधानमंत्री पद लालकृष्ण आडवाणी को सौंप दें। लेकिन वाजपेयी ने इससे इनकार करते हुए कहा था कि बहुमत के बल पर उनका राष्ट्रपति बनना एक गलत परंपरा की शुरुआत होगी।

तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेयी के मीडिया सलाहकार रहे अशोक टंडन ने 'प्रभात प्रकाशन' की ओर से प्रकाशित पुस्तक 'अटल संस्मरण' में इस प्रकरण का उल्लेख किया है। अब्दुल कलाम 2002 में उस समय केंद्र में सत्तारूढ़ राजग और विपक्ष दोनों के समर्थन से 11वें राष्ट्रपति निर्वाचित हुए थे। टंडन ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि डॉ. पी.सी. अलेक्जेंडर महाराष्ट्र के राज्यपाल थे और पीएमओ में एक प्रभावशाली साथी व्यक्तिगत तौर पर अलेक्जेंडर के संपर्क में थे तथा उन्हें ऐसा संकेत दे रहे थे जैसे वह वाजपेयी के दूत हों। वह सज्जन वाजपेयी को लगातार यह समझाने की कोशिश कर रहे थे कि डॉ. अलेक्जेंडर, जो कि एक ईसाई हैं, को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाना चाहिए। ऐसा करने से कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी असहज होंगी और भविष्य में उनके प्रधानमंत्री बनने की संभावना नहीं रहेगी, क्योंकि देश में एक ईसाई राष्ट्रपति के रहते एक और ईसाई प्रधानमंत्री नहीं हो सकेगा।

टंडन ने लिखा है, इसी दौरान भाजपा के भीतर से स्वर उठने लगे कि क्यों न अपने ही दल से किसी वरिष्ठ नेता को इस पद के लिए चुना जाए। इस बीच, पूरा विपक्ष सेवानिवृत्त हो रहे राष्ट्रपति के. आर. नारायणन को राजग उम्मीदवार के खिलाफ खड़ा करने की कोशिश कर रहा था, जिसे उन्होंने ठुकरा दिया। नारायणन की शर्त थी कि वह तब ही चुनाव लड़ने को तैयार होंगे, जब निर्विरोध चुने जा सकेंगे। टंडन के अनुसार वाजपेयी ने मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के नेताओं को आमंत्रित किया, ताकि राष्ट्रपति पद के लिए आम सहमति बनाई जा सके।

कांग्रेस नेताओं के साथ बैठक में वाजपेयी ने रखा था कलाम के नाम का प्रस्ताव

टंडन ने कहा, मुझे याद है कि सोनिया गांधी, प्रणब मुखर्जी और डॉ. मनमोहन सिंह उनसे मिलने आए थे। वाजपेयी ने पहली बार आधिकारिक रूप से खुलासा किया कि राजग ने राष्ट्रपति चुनाव के लिए डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम को उम्मीदवार बनाने का निर्णय लिया है। बैठक में कुछ क्षणों के लिए सन्नाटा छा गया। फिर सोनिया गांधी ने चुप्पी तोड़ी और कहा कि आपके चयन से हम स्तब्ध हैं, हमारे पास उन्हें समर्थन देने के अलावा कोई विकल्प नहीं है, लेकिन हम आपके प्रस्ताव पर चर्चा करेंगे और निर्णय लेंगे।

रिश्तों में नहीं आई कटुता

भाजपा में बहुप्रचारित अटल-आडवाणी जोड़ी के बारे में टंडन ने लिखा है कि पार्टी में कुछ नीतिगत मसलों पर मतभेद के बावजूद दोनों नेताओं के बीच संबंधों में सार्वजनिक कटुता नहीं आई। आडवाणी ने हमेशा वाजपेयी को 'मेरे नेता और प्रेरणास्रोत' कहा, और वाजपेयी ने भी उन्हें 'अटल साथी' कहकर संबोधित किया। टंडन ने कहा, अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी की जोड़ी भारतीय राजनीति में सहयोग और संतुलन का प्रतीक रही है। दोनों ने न केवल भाजपा को खड़ा किया, बल्कि सत्ता और संगठन को एक नई दिशा दी। उनकी मित्रता और साझेदारी यह सिखाती है कि जब दो विचारवान, समर्पित और ईमानदार नेता अहंकार नहीं, आदर्शों के साथ चलें, तो राष्ट्र और संगठन दोनों को सफलता मिलती है।

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