Wednesday, November, 05,2025

अभियोजन स्वीकृति के लिए केंद्र और निजी संस्थानों के मुंह ताक रही एसीबी

जयपुर: राजस्थान में भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) की जांच फाइलें केंद्र सरकार और निजी कंपनियों के दफ्तरों में अटकी पड़ी हैं, जिससे मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की जीरो टॉलरेंस नीति की रफ्तार धीमी होती दिख रही है। सितंबर 2025 तक 600 से अधिक भ्रष्टाचार के प्रकरण अभियोजन स्वीकृति के इंतजार में थे, जिनमें लगभग 190 मामले केंद्र, बैंकिंग संस्थानों और निजी फर्मों से जुड़े हैं। कई आरोपी रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों पकड़े गए, पर अभियोजन स्वीकृति न मिलने से आज भी पदों पर बने हैं। सवाल उठ रहा है कि जब सबूत मौजूद हैं, तो निजी कंपनियों या केंद्र से अनुमति की जरूरत क्यों? एसीबी अधिकारियों के अनुसार, कई मामलों में टैप वीडियो और ऑडियो होने के बावजूद कार्रवाई रुक गई है। कुछ आरोपी सेवानिवृत्त भी हो चुके हैं, मगर मुकदमे शुरू नहीं हो पाए। भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस का दावा तभी असरदार होगा, जब राज्य सरकार केंद्र और निजी संस्थानों से जवाबदेही तय करे, वरना रिश्वतखोरी के खिलाफ लड़ाई फाइलों में ही दम तोड़ती रहेगी।

एकीकृत प्रणाली की जरूरत

विशेषज्ञों का सुझाव है कि राज्य सरकार को तुरंत "एकीकृत अभियोजन अनुमोदन पोर्टल" बनाना चाहिए, जिससे राज्य, केंद्र और निजी संस्थानों के भ्रष्टाचार प्रकरणों की स्वीकृति एक ही प्लेटफॉर्म पर मॉनिटर हो सके। अभी फाइलें राज्य सचिवालय से दिल्ली और कॉरपोरेट दफ्तरों तक घूमती रहती है और कार्रवाई ठप हो जाती है।

निजी कंपनियों और केंद्रीय संस्थानों के अड़ंगे

राज्य सरकार के विभागों में अभियोजन स्वीकृति की प्रक्रिया तय है, लेकिन केंद्रीय एजेंसियों, बैंकों और निजी फर्मों में यह बेहद अस्पष्ट बनी हुई है। एसीबी अधिकारियों के अनुसार, जैसे ही फाइलें भेजी जाती है, संबंधित संस्थान अक्सर यह कहते हुए लौटा देते हैं कि मामला उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर है या पहले आंतरिक जांच होगी। वर्तमान में 23 प्रकरण ऐसे हैं जो स्वीकृति की प्रतीक्षा में हैं, जिनमें बिजली कंपनियां, निर्माण फर्म, बीमा संस्थान और बैंक शाखाएं प्रमुख हैं।

उदाहरण जो बताते हैं सिस्टम की कमजोरी

उदयपुरः लाइन सुपरवाइजर एक निजी पावर कंपनी के लाइन सुपरवाइजर को 20 हजार रुपए की रिश्वत लेते एसीबी ने पकड़ा। कंपनी ने जवाब दिया कि वह सरकारी कर्मचारी नहीं है। इसके चलते एक साल बाद भी फाइल जस की तस पड़ी है।

अजमेर डिवीजन, बीएसएनएल इंजीनियर

रिश्वतखोरी में ट्रैप होने के बाद मामला सीवीसी को भेजा गया। छह महीने बाद भी कोई जवाब नहीं।

जालोर का खनन प्रकरण

निजी एजेंसी के सर्वेयर को ट्रैप किया गया, पर कंपनी ने जवाब दिया "हम सरकारी इकाई नहीं है।" फाइल एक साल से विभाग और कंपनी के बीच घूम रही है।

जयपुर का बैंक केस

नेशनलाइज्ड बैंक मैनेजर को लोन पास करने के बदले रिश्वत लेते पकड़ा गया। बैंक मुख्यालय ने कहा, "विभागीय जांच पहले पूरी होगी, अभियोजन बाद में।"

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