Thursday, June, 26,2025

भारत को साझेदारों की तलाश है, उपदेशकों की नहीं: जयशंकर

नई दिल्ली: विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भारत के साथ गहरे संबंध विकसित करने के लिए यूरोप को कुछ संवेदनशीलता दिखाने की सलाह दी है। साथ ही, उन्होंने कहा कि पारस्परिक हितों को ध्यान में रखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत भागीदारों की तलाश कर रहा है, न कि 'उपदेशकों' की।

जयशंकर ने रविवार को आर्कटिक सर्किल इंडिया फोरम-2025 में एक संवाद सत्र में कहा कि भारत ने हमेशा 'रूसी यथार्थवाद' की वकालत की है और संसाधन प्रदाता एवं उपभोक्ता के रूप में भारत और रूस के बीच महत्वपूर्ण सामंजस्य है और वे इस मामले में एक दूसरे के पूरक हैं।

विदेश मंत्री ने रूस-यूक्रेन संघर्ष का समाधान रूस को शामिल किए बिना खोजने के पश्चिम के पहले के प्रयासों की भी आलोचना करते हुए कहा कि इसने यथार्थवाद की बुनियादी बातों को चुनौती दी है।

उन्होंने कहा, मैं जैसे रूस के यथार्थवाद का समर्थक हूं, वैसे ही मैं अमेरिका के यथार्थवाद का भी समर्थक हूं। मुझे लगता है कि आज के अमेरिका के साथ जुड़ने का सबसे अच्छा तरीका हितों की पारस्परिकता को खोजना है, न कि वैचारिक मतभेदों को आगे रखकर मिलकर काम करने की संभावनाओं को कमजोर होने देना। जयशंकर ने आर्कटिक में हालिया घटनाक्रम के दुनिया पर पड़ने वाले असर और बदलती वैश्विक व्यवस्था के क्षेत्र पर पड़ने वाले प्रभावों को लेकर व्यापक चर्चा करते हुए ये बातें कहीं।

साझेदारी के लिए संवेदनशीलता का होना जरूरी

जयशंकर ने कहा कि हमारे दृष्टिकोण से बात करें तो यदि हमें साझेदारी करनी है तो कुछ आपसी समझ होनी चाहिए, कुछ संवेदनशीलता होनी चाहिए, कुछ पारस्परिक हित होने चाहिए तथा यह अहसास होना चाहिए कि दुनिया कैसे काम करती है। ये सभी कार्य यूरोप के विभिन्न भागों में अलग-अलग स्तरों पर प्रगति पर हैं, इसलिए कुछ देश आगे बढ़े हैं, कुछ थोड़े कम।

दूसरों को उपदेश, खुद पालन नहीं करते

जयशंकर ने यूरोप से भारत की अपेक्षाओं संबंधी एक प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा कि उसे उपदेश देने के बजाय पारस्परिकता के ढांचे के आधार पर कार्य करना शुरू करना होगा। उन्होंने कहा, जब हम दुनिया को देखते हैं तो हम साझेदारों की तलाश करते हैं, हम उपदेशकों की तलाश नहीं करते, विशेषकर ऐसे उपदेशको की, जो अपनी बातों का अपने देश में स्वयं पालन नहीं करते, लेकिन अन्य देशों को उपदेश देते हैं। मुझे लगता है कि यूरोप का कुछ हिस्सा अब भी इस समस्या से जूझ रहा है। कुछ हिस्से में बदलाव आया है। उन्होंने कहा कि यूरोप को कुछ हद तक वास्तविकता का एहसास हुआ है। अब हमें यह देखना होगा कि वे इस पर आगे बढ़ पाते हैं या नहीं।

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