Friday, September, 26,2025

एसीबी की एफआर के आधार पर हाई कोर्ट ने बंद किया केस

जयपुर: राजस्थान हाई कोर्ट ने विधायकों की खरीद-फरोख्त से जुड़े एमीबी प्रकरण में एमोषों की ओर से पेश एफआर के आधार पर केस को बंद कर दिया है। 2020 में गहलोत सरकार को गिराने के लिए विधायकों की खरीद-फरोख्त करने के जिस मामले की कहानी जिन किरदारों के इर्द-गिर्द बुनी गई थी, उन दोनों को लेकर एसीबी की तरफ से पेश एफआर को अदालत ने मंजूर करते हुए यह केस बंद कर दिया। इन दोनों किरदारों में भाजपा से जुड़े अशोक सिंह और भरत मालानी के नाम शामिल थे। एसीबी ने एफआर में माना है कि दोनों को फोन रिकॉर्डिंग में ऐसे कोई भी साक्ष्य नहीं है, जो हॉर्स ट्रेडिंग की ओर इशारा करते ही। यह वही विवाद था, जिसके चलते 2020 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने उनकी सरकार को गिराने का षड्यंत्र करने कर दावा करते हुए सचिन पायलट को निशाने पर लिया था। यहीं से सरकार गिराने के अंदेशे में दो माह तक कांग्रेस और गहलोत सरकार को समर्थन देने वाले विधायकों की कड़ी सुरक्षा के बीच होटल में बाग्रेबंदी की गई थी। मामले में गहलोत सरकार में मुख्य सचेतक रहे महेश जोशी की तरफ से एसओनी को शिकायत दी गई थी। इस शिकायत को बाद में एसीबी में भेज दिया गया था। 8 अगस्त, 2020 को एसीबी ने इस मामले में एफआर दर्ज की थी। इस शिकायत के आधार पर मलानी और अशोक सिंह को गिरफ्तार भी किया गया था।

एसीबी की एफआर... हर कहानी को नकारा

एसीबी ने अदालत में पेश अपनी एपाआर में कहा है कि जांच के दौरान किसी भी फोन रिकॉर्डिंग में और न ही किसी विधायक की तरफ से खरीद फरोख्त को लेकर कोई शिकायत दी गई है। बातचीत में केवल अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच चल रहे राजनीतिक घटनाक्रम को लेकर संवाद है। वहीं, मलानी और सिंह की तरफ से कोई भी पैसों का लेन-देन भी सामने नहीं आया है।

अशोक सिंह और भरत मालानी से ही शुरू हुआ पूरा विवाद

गहलीत सरकार के समय एसओजी ने सबसे पहले अशोक सिंह और भरत मालानी की कौल रिकॉर्डिंग के आधार पर गिरफ्तार किया था। इस मामले में तीन विधायकों के खिलाफ प्राथमिकी भी दर्ज की गई थी। इनमें दौसा की महुवा सीट से विधायक ओमप्रकाश हुडला, अजमेर की किशनगढ़ सीट से विधायक सुरेश टांक और पाली जिले की मारवाड़ जंक्शन सीट से विधायक खुशवीर सिंह के नाम शामिल थे। आरोप था कि इन तीनों विधायकों ने राज्यसभा चुनाव से पहले बासवाड़ा में विधायकों से संपर्क किया था। उन्हें खरीद-फरोख्त के लिए करोड़ों रुपए की रकम देने का ऑफर दिया था। लीनी विधायकों के संपर्क अशोक सिंह और भरत मालानी से बताए जा रहे थे।

साजिश बेनकाब, भाजपा कार्यकर्ताओं को न्यायालय ने किया बरीः राठौड़

भाजपा प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ ने पूर्ववर्ती काग्रेस सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि राजस्थान उच्च न्यायालय की और से भरत मालानी (ब्यावर) और अशोक सिंह (उदयपुर) को बाइज्जत बरी किया जाना इस बात का प्रमाण है कि गहलोत सरकार ने राजनीतिक द्वेषवंश झूठे मुकदमे दर्ज करवाए थे। राठौड़ ने कहा कि 2020 में काग्रेस की आतरिक कलह और सत्ता संघर्ष को छुपाने के लिए एररओजी और एसीबी का दुरुपयोग कर भाजपा समर्थित कार्यकर्ताओं को फंसाया गया। इन निर्दोष व्यक्तियों को एक माह तक जेल में रहना पड़ा। अब जांच एजेंसी की एफआर के आधार पर न्यायालय ने उन्हें पूरी तरह बरी कर दिया है, जिससे कांग्रेस की डाली राजनीति उजागर हुई है। उन्होंने कहा कि उस समय अशोक गहलौत ने सत्ता बचाने के लिए विधायकों को होटल में बंद रखा और भाजपा पर सरकार गिराने के झूठे आरोप लगाए। यह फैसला लोकतंत्र और न्याय की जीत है तथा कांग्रेस की विफल नीतियों की करारी हार है। जनता कांग्रेस के षड्यंत्रों को नहीं भूली है और आगामी चुनाव में उन्हें इसका जवाब देगी।

हाई कोर्ट की एकलपीठ ने दिए आदेश

जस्टिस आशुतोष कुमार की एकलपीठ ने यह आदेश भरत मालानी व अशोक सिंह की आपराधिक याचिका का निस्तारण करते हुए दिए। अदालत ने कहा कि जसीबी ने स्वयं ही प्रकरण में अपराध बनना प्रमाणित नहीं मानते हुए एफआर पेश की है। ऐसे में एफआर को चुनौती देने का कोई औचित्य नहीं है। याचिकाकर्ताओं की और से पांच साल पहले पेश याचिका में एसीबी की ओर से दर्ज एफआर को चुनौती दी गई थी। याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता बी. आर. बाजवा और अधिवक्ता कपिल गुप्ता का कहना था कि प्रकरण में पहले एसओजी में राजद्रोह का मामला दर्ज किया गया और फिन उसमें एफआर लगाते हुए प्रकरण को एसीबी में भेज दिया गया। प्रकरण केवल फोन रिकॉर्डिंग के आधार पर दर्ज किया गया है। सुनवाई के दौरान अदालत को बताया गया कि मामले में एसीबी ने अदालत में एफअल पेश कर दी है। ऐसे में प्रकरण को निस्तारित किया जाए।

आपको बता दें कि एसीबी ने मामला दर्ज किया था कि याचिकाकर्ताओं ने अन्य के राहयोग से राजस्थान विधानसभा के चुने हुए वर्तमान विधायकों को रूपए का लालच देकर लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार को अस्थिर करने और हाल ही के राज्यसभा चुनाव के मतदान में उन विधायकों को अपने मत का प्रयोग रुपए देकर अनुचित तरीके से प्रभावित करने का आपराधिक कृत्य किया है। बाद में एसीबी ने विस्तृत जांच में यह कहते हुए एफआर पेश कर दी थी कि आरोपियों के खिलाफ प्रकरण में कोई ठोस साक्ष्य नहीं मिले हैं।

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