Friday, October, 10,2025

अनुभवी और वरिष्ठ आईएएस को ही कार्मिक सचिव की कुर्सी मिलने की उम्मीद

जयपुर: कार्मिक विभाग में 13 महीने की छोटी पारी खेलने के बाद सचिव के.के. पाठक (आईएएस 2001 बैच) अब दिल्ली जा रहे हैं। सोमवार को उन्हें केंद्र सरकार में डिपार्टमेंट ऑफ फर्टिलाइजर में संयुक्त सचिव के पद पर जिम्मेदारी संभालनी है। हालांकि उनका अपाइंटमेंट ऑर्डर दिल्ली से 14 सितंबर को ही आ गया था, लेकिन राज्य सरकार ने उन्हें रिलीव करने में लंबा समय लगा दिया। इसी कारण पाठक के भविष्य को लेकर असमंजस बना हुआ था, जो अब अंततः दूर हो गया है।

यह बात सर्वविदित है कि सरकार में डीओपी सचिव की पोस्ट बहुत महत्वपूर्ण होती है। इस कुर्सी पर सरकार अपने भरोसे के अफसर को नियुक्त करती है और एक बार पोस्टिंग के बाद उसे जल्दी से नहीं बदलती है। पूर्व में इस पोस्ट पर मुकेश शर्मा 4 साल, हेमंत गेरा साढ़े तीन साल, भास्कर ए. सावंत और आलोक गुप्ता ढाई-ढाई साल, रोली सिंह 21 महीने की लंबी पारी खेल चुके हैं। इस मायने में के. के. पाठक की 13 महीने की पारी सबसे छोटी अवधि की है।

सचिव डीओपी की पोस्ट के बारे में यह बात भी उल्लेखनीय है कि इस पद पर अनुभवी और काफी सीनियर आईएएस को बैठाया जाता रहा है। अभी तक 20 साल और उससे ज्यादा वर्षों की वरिष्ठता वाले आईएएस की ही यहां पोस्टिंग हुई है। इस बैकग्राउंड को देखते हुए यह माना जा रहा है कि डीओपी में के. के. पाठक का उत्तराधिकारी वर्ष 2005 से बाद के बैच का कोई आईएएस संभवतः नहीं होगा। यह भी उल्लेखनीय है कि पूर्व में प्रमुख सचिव स्तर के सीनियर आईएएस को भी डीओपी में नहीं लगाया गया है। ऐसे में जानकारों का मानना है कि यदि डीओपी में सरकार रेगुलर पोस्टिंग करती है तो फिर वर्ष 2001 से 2005 बैच के आईएएस अफसरों में से ही सलेक्शन करना होगा। यहां यह उल्लखित करना प्रासंगिक होगा कि के.के. पाठक ने भले ही डीओपी में 13 महीने की छोटी पारी खेली हो, लेकिन इस दौरान उन्होंने विभाग में कई इनोवेटिव काम किए हैं। कई सिस्टम ऑनलाइन कर दिए हैं और नई वेवसाइट बना कर अधिकांश सूचनाएं और रिकॉर्ड रेडिली अवेलेबल बना दिए हैं। जानकारों का मानना है कि डीओपी के काम-काज को व्यवस्थित और स्मूथ बनाने में के.के. पाठक का योगदान याद किया जाएगा।

गौरतलब है कि पाठक के पास फरवरी 2025 से देवस्थान विभाग का भी अतिरिक्त चार्ज था। यहां भी उन्होंने अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया है। कुंभ मेले में राजस्थान के यात्रियों के लिए उन्होंने अच्छी व्यवस्थाएं की थे। वे खुद तब कई बार प्रयागराज गए थे। अब देवस्थान में भी उनका उत्तराधिकारी खोजना होगा।

क्या डॉक्टरों को अस्पताल प्रशासन की जिम्मेदारी से अलग रखा जाएगा?

जयपुर के एसएमएस हॉस्पिटल में आग लगने के हादसे ने पूरे शासन-प्रशासन को झकझोरा है। जानकारी मिली है कि राजस्थान सरकार ने इस संबंध में एक बड़ा फैसला लिया है। अब सभी बड़े अस्पतालों में सिविल और इलेक्ट्रिक के नए काम और पुराने कामों की मेटिनेंस पूरी तरह पीडब्ल्यूडी को सौंप दी गई है। हादसे के बाद यह सवाल उठाया जा रहा है कि अस्पतालों में प्रशासन का काम डॉक्टर्स को नहीं सौंपा जाए। यह जिम्मेदारी प्रशासनिक जानकारों को दी जानी चाहिए। प्रशासन की जिम्मेदारी में डॉक्टर्स इतने उलझ जाते हैं कि अपने चिकित्सकीय काम में रुचि ही नहीं लेते हैं। देखने में यह आया है कि डॉक्टर्स प्रशासन का काम छोड़ना ही नहीं चाहते हैं, क्योंकि इस फील्ड में 'हरियाली ही हरियाली' है। उल्लेखनीय है कि 15 वें वित्त आयोग का प्रस्ताव है कि आईएएस और आईपीएस की तर्ज पर ऑल इंडिया मेडिकल सर्विस (आईएमएस) गठित की जाए। इसे अस्पतालों का प्रबंधन सौंपा जाए। लेकिन, फिलहाल तो राजस्थान सरकार को फैसला लेना होगा कि क्या डॉक्टर्स को प्रशासन की जिम्मेदारी से अलग रखा जाए?

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