Saturday, December, 27,2025

मिनी सचिवालय में आदिवासी संगठनों का फूटा गुस्सा, प्रदर्शन

प्रतापगढ़: अरावली के संरक्षण को लेकर मंगलवार को मिनी सचिवालय में आदिवासी संगठनों का गुस्सा फूट पड़ा। भील प्रदेश मुक्ति मोर्चा और भारत आदिवासी पार्टी सहित कई सामाजिक संगठनों ने मिनी सचिवालय परिसर में विरोध-प्रदर्शन किया। इस दौरान कार्यकर्ताओं ने अधिकारियों को मिनी सचिवालय के बाहर बुलाने की मांग की और अंदर ही धरने पर बैठ गए।

आंदोलनकारियों का आरोप था कि जब भी वे अपनी समस्याओं को लेकर ज्ञापन देने आते हैं, तब-तब जिला कलेक्टर उपलब्ध नहीं रहते। डूंगरपुर सांसद राजकुमार रोत ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि अरावली पर्वतमाला आदिवासी क्षेत्रों में जल, जंगल और जमीन की सुरक्षा का मूल आधार है। उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा अरावली को लेकर लिया जा रहा फैसला सीधे तौर पर आदिवासी समाज और पर्यावरण के भविष्य से जुड़ा हुआ है। इस मौके पर रोत के नेतृत्व में ज्ञापन दिया गया, जिसमें कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट में दी गई अरावली की नई परिभाषा को खारिज कराया जाए और मामले की दोबारा समीक्षा के लिए एक नई समिति का गठन किया जाए। साथ ही, किसी भी निर्णय से पहले क्षेत्र के के लोगों के साथ जनसुनवाई कर उनकी सहमति और मुझाव लिए जाएं, क्योंकि अरावली का अस्तित्व केवल पहाड़ों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे क्षेत्र की जीवन रेखा है।

बड़े आंदोलन की चेतावनी

प्रदर्शनकारियों ने चेतावनी दी कि यदि सरकार और प्रशासन ने उनकी मांगों पर गंभीरता से विचार नहीं किया, तो आंदोलन को और तेज किया जाएगा। आने वाले दिनों में इस मुद्दे को लेकर उदयपुर संभाग मुख्यालय पर एक विशाल रैली आयोजित कर सरकार के खिलाफ बड़ा आंदोलन छेड़ा जाएगा।

अरावली की परिभाषा एकतरफा

सांसद रोत ने आरोप लगाया कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में सरकार की सिफारिश पर अरावली पर्वत श्रृंखला की जो नई परिभाषा प्रस्तुत की गई है, वह पूरी तरह एकतरफा है। इस परिभाषा को तय करने से पहले न तो स्थानीय निवासियों से और न ही सामाजिक संगठनों से कोई चर्चा की गई। उन्होंने बताया कि राज्य सरकार की समिति द्वारा तैयार ड्राफ्ट के अनुसार केवल 100 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्र को ही अरावली माना जाएगा, जबकि 100 मीटर से नीचे के हिस्से को अरावली से बाहर कर वहां खनन की अनुमति देने का रास्ता साफ किया जा रहा है।

उद्योगपतियों के हित में है परिभाषा

रोत ने कहा कि इस नई परिभाषा का असली उद्देश्य बड़े उद्योगपतियों के हित में खनन को बढ़ावा देना है। अरावली क्षेत्र में लिथियम और बॉक्साइट जैसे महत्वपूर्ण खनिज संसाधनों के भंडार पाए गए है, जिन्हें हासिल करने के लिए देश-विदेश की कंपनियों का दबाव सरकार पर बनाया जा रहा है। खनन को अनुमति दी गई तो इससे पर्यावरणीय असंतुलन पैदा होगा और आदिवासी क्षेत्रों में जलस्रोत, जंगल और खेती योग्य जमीन को भारी नुकसान पहुंचेगा।

अरावली को बचाने सड़कों पर उतरे बच्चे, निकाली रैली

उदयपुर। अरावली पर्वत श्रृंखला को बचाने के लिए मंगलवार को शहर में स्कूली बच्चों ने देवाली छोर से फतहसागर की पाल तक रैली निकाली और सेव अरावली का नारा दिया। बच्चों में इस बात को लेकर गुस्सा था कि जब अरावली से हम सब सुरक्षित हैं और ये हमारे लिए बहुत जरूरी है तो इसे खत्म करने का प्रयास नहीं होना चाहिए। स्कूल के शिक्षकों ने कहा कि इस निर्णय को लेकर आज हम अपना विरोध दर्ज करवा रहे हैं। सब यह चाहते हैं कि अरावली बचे। अरावली की वजह से हमारा ग्राउंड वाटर बचा हुआ है और इससे हमें आक्सीजन मिल रही है।

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