Friday, September, 26,2025

बनारस के रहस्य और रात्रिकालीन शांति को कैनवास पर किया उजागर

जयपुर: समय, स्मृति और अध्यात्म के जीवित प्रतीक बनारस शहर को रंगों से कैनवास पर उकेरा, कुछ ऐसा ही नजारा था आईसीए गैलरी की ओर से आयोजित ग्रुप एग्जीबिशन 'बनारस: द सेक्रेड घाट्स' का। शुक्रवार से शुरू हुई ये एग्जीबिशन वाराणसी की शाश्वत आत्मा को समर्पित रही, जिसमें भारत के सबसे पुराने शहर में स्थित गंगा घाटों के बहुआयामी वातावरण को अभिव्यक्त करता है। प्रदर्शनी के उद्धघाटन के लिए विद्यासागर उपाध्याय, विनय शर्मा, मनीष शर्मा, अभिनव बंसल और आनंद एम बेकवाड़ ने दीप प्रज्वलन कर प्रदर्शनी की शुरुआत की।

प्रदर्शनी में उड़ीसा, वेस्ट बंगाल, राजस्थान, दिल्ली और महाराष्ट्र से आए 12 आर्टिस्ट्स, आनंद एम. बेकवड, दिपांकर चंदा, मानष रंजन जेना, मनीष शर्मा, मुकेश साह, परमेश पॉल, संजय एन राउत, सौमेन साहा, सुकांता दास, तृप्ति जोशी, विनय शर्मा और विवेक निम्बोलकर ने अपने लगभग 36 आर्टवर्क्स डिस्प्ले किए। हेम राणा, अमित शर्मा व रवि ठाकुर द्वारा क्यूरेट किए गए इस एग्जिबिशन में बनारस के मौन और स्वर, पवित्रता और दैनिक जीवन के रंग देखने को मिले। इस दौरान आईसीए गैलरी से अभिनव बंसल ने बताया कि गुलाबी नगरी को इसकी आध्यात्मिक पहचान के कारण अक्सर छोटी काशी से सम्बोधित किया जाता है ऐसे में ये प्रदर्शनी इस कला संवाद को और गहरा करता है। यहां बनारस की पवित्रता और जयपुर की भक्ति तथा परम्परा की आभा के बीच एक साझा मेल होगा। सभी प्रतीकात्मक इंस्टॉलेशन, इंक ऑन पेपर, अक्रिलिक ऑन कैनवास और मिक्स-मीडिया आदि प्रयोगों से लेकर मिनिमल संरचनाओं और पौराणिक अभिव्यक्तियों तक बनारस को स्थायित्व और अस्थायित्व के बीच एक जीवित सेतु के रूप में प्रस्तुत किया।  

चित्रकला से पूर्वजों और सृजन के बीच संवाद किया प्रस्तुत -

जहां पश्चिम बंगाल के स्व-शिक्षित कलाकार परमेश पॉल ने ऐक्रेलिक पेंटिंग्स से गंगा, शिव और बनारस प्रतीकात्मकता को नए रंगों में प्रस्तुत किया। वहीं सुमन साहा ने तीखी रेखाओं और धुंधली बनावट को सम्मिलित कर प्रवाहमयी रूप में रचा। आर्टिस्ट दिपांकर चंदा की बनारस शृंखला एकांत और आध्यात्म को पकड़ती हुई दिखी। सरल किंतु गहन प्रतीकात्मकता से युक्त, तृप्ति जोशी साधारण अनुष्ठानिक वस्तुओं, जैसे कलश और रुद्राक्ष को दृश्य मंत्रों में बदलती दिखी। विनय शर्मा ने अपने चित्रकला से पूर्वजों और सृजन के बीच संवाद प्रस्तुत किया। बनारस और जगन्नाथ प्रतीकों को बुनते हुए, मनश रंजन जेना अमर रंगों और अमूर्तता के क्षेत्र को रचा। विवेक निम्बोलकर ने जीवन, ऊर्जा और अध्यात्म के चक्रों को पकड़ते हुए बनारस के रहस्य और रात्रिकालीन शांति को दर्शाया। मनीष शर्मा ने उनके कार्य में परंपरा, क्षय और आधुनिकता के बीच तनाव को उजागर किया। मुकेश साह की कला पर्वतों और परिदृश्यों को नाजुकता और दृढ़ता के रूपक में प्रस्तुत किया। संजय एन. राउत की जीवंत पेंटिंग्स परंपरा की गरिमा को संजोए हुए बनारस के भक्तिमय जीवन को दर्शाती दिखी। सुकांत दास ने अपने विशिष्ट अंदाज़ में ज्योतिर्लिंग और शिव की पुनर्कल्पना करते हुए बनारस की पवित्र आभा को प्रतीकात्मक शिष्टता के साथ प्रस्तुत किया।

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