Monday, April, 07,2025

चुनावी खर्च के लिए भ्रष्टाचार कम होगा, बढ़ेगी देश की जीडीपी

जयपुर: "एक राष्ट्र एक चुनाव" को लेकर देश भर में जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है। इसको लेकर मिल रहे पॉजिटिव रेस्पॉन्स के संबंध में अभियान के प्रदेश संयोजक सुनील भार्गव ने बताया कि "वन नेशन वन इलेक्शन" का कॉन्सेप्ट देश के लिए नया नहीं है। आपातकाल के बाद अलग-अलग चुनाव होने लगे, इसका असर समाज और देश की प्रगति पर पड़ा। अब पुनः साथ चुनाव होने से देश में प्रशासनिक दक्षता व नीति संबंधी निरंतरता बढ़ेगी, खर्चा भी घटेगा। उन्होंने कहा कि चुनावों में खर्च के लिए कालाधन और भ्रष्टाचार बढ़ता है, उसमें कमी आएगी। साथ ही, देश का नीतिगत विकास होगा व जीडीपी बढ़ेगी। इससे वर्ष 2047 तक देश विकसित बनेगा।

प्रदेश दौरे पर आए सुनील भार्गव ने बताया कि देश के विकास के लिए "एक राष्ट्र एक चुनाव" को लेकर लोगों में रुचि बढ़ी है। देश में अब तक हुए 400 से अधिक चुनावों ने चुनाव आयोग की प्रतिबद्धता को प्रदर्शित किया है। "एक राष्ट्र एक चुनाव के लिए भारत सरकार ने 2023 में पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में उच्च स्तरीय समिति का गठन किया, जिसने 2024 में रिपोर्ट दी। इसे लागू करने के लिए गहन विचार और आम सहमति की जरूरत है।

विस-लोस भंग होने से टूटा सिलसिला 

भार्गव ने बताया कि संविधान लागू होने के बाद 1951 से 1967 तक लोकसभा और सभी विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हुए थे। कुछ विधानसभाओं के समय से पहले भंग होने के कारण 1968 और 1969 में साथ चुनाव कराने में दिक्कत आई। चौथी लोकसभा भी 1970 में समय से पहले भंग कर 1971 में नए चुनाव कराए गए। आपातकाल के कारण पांचवीं लोकसभा का कार्यकाल 1977 तक बढ़ाया गया। इसके बाद आठवीं, दसवीं, 14 वीं व 15 वी लोकसभा कार्यकाल पूरा कर सकी। छठी, सातवी, नौवीं, 11वीं, 12वीं और 13वीं लोकसभा समय से पहले भंग कर दी गई। इससे चुनावी कार्यक्रमों में बदलाव हुआ।

35 राजनीतिक दलों ने समर्थन किया

कोविद कमेटी की रिपोर्ट का हवाला देते हुए भार्गव ने बताया कि 47 राजनीतिक दलों ने इस पर अपने विचार प्रस्तुत किए। इनमें से 32 ने संसाधनों के सर्वोत्तम उपयोग और सामाजिक सद्भाव जैसे लाभों का हवाला देते हुए एक साथ चुनाव कराने का समर्थन किया। 15 दलों ने संभावित लोकतंत्र विरोधी प्रभावों और क्षेत्रीय दलों के हाशिए पर जाने से जुड़ी चिंता व्यक्त की। वहीं, समिति ने भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीशों, पूर्व चुनाव आयुक्तों और विधि विशेषज्ञों से परामर्श लिया। इनमें से अधिकतर ने एक साथ चुनाव कराने की अवधारणा का समर्थन किया। सीआईआई, फिक्की और एसोचैम जैसे व्यापारिक संगठनों ने भी समर्थन किया। कानूनी और संवैधानिक विश्लेषण समिति ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 82ए और 324ए में संशोधन का प्रस्ताव रखा है, ताकि लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के लिए एक साथ चुनाव कराए जा सके।

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