Tuesday, August, 12,2025

दो झुलसाने वाले फैसले, एक फोन कॉल और एक इस्तीफा !

नई दिल्ली: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के अचानक दिए गए इस्तीफे ने नई दिल्ली के सत्ता गलियारों में तीज अटकलों और राजनीतिक चर्चाओं को जन्म दे दिया है। आधिकारिक तौर पर यह इस्तीफा स्वास्थ्य कारणों से बताया गया है, लेकिन घटनाक्रम की जानकारी रखने वाले सूत्रों के अनुसार, इस्तीफे के पीछे कई कारण हैं, जिनमें से केवल एक स्वास्थ्य संबंधी हैं। अंदरूनी सूत्रों के अनुसार, धनखड़ बीते कुछ सप्ताहों से इस्तीफे पर विचार कर रहे थे, और एक करीबी सहयोगी ने एक सप्ताह पहले ही संकेत दे दिया था कि निर्णय जल्द ही लिया जा सकता है। हालांकि उस समय धनखड़ ने न तो तारीख तय की थी और ना ही घोषणा का समय। लेकिन सोमवार को राज्यसभा में जो कुछ हुआ, वह उनके अंतिम निर्णय का कारण बना और उन्होंने एक प्रकार की शांत असहमति के साथ अपने संवैधानिक पद से त्यागपत्र दे दिया।

सूत्रों के मुताबिक, दो अहम मौकों पर धनखड़ ने भारतीय जनता पार्टी की आधिकारिक लाइन से हटकर कदम उठाया, जिससे सरकार के भीतर असहजता पैदा हुई। पहला मामला था राज्यसभा में 'ऑपरेशन सिंदूर जैसे संवेदनशील विषय पर एक घंटे की चर्चा की अनुमति देना। इस कदम ने नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और कांग्रेस को सरकार पर तीखा हमला बोलने का अवसर दे दिया। यह लोकसभा के बिलकुल विपरीत था, जहां चर्चा की अनुमति नहीं दी गई और पार्टी की सख्त लाइन का पालन किया गया।

दिलचस्प बात यह है कि एक जानकार सूत्र का दावा है कि सोमवार को दोपहर 3 बजे जब धनखड़ ने विपक्ष का प्रस्ताव स्वीकार करते हुए जस्टिस वर्मा मुद्दे पर बहस की अनुमति दी, उसके बाद शाम 7:15 बजे यह मुहा शीर्ष स्तर पर समीक्षा के लिए लिया गया और यह महसूस किया गया कि 'अब बहुत हो चुका'। इसके बाद शीर्ष नेतृत्व ने स्पष्ट संदेश धनखड़ को दिया कि उन्हें पद छोड़ देना चाहिए। इस कॉल के तुरंत बाद, धनखड़ ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से तात्कालिक मुलाकात का समय मांगा और राष्ट्रपति ने तुरंत उन्हें समय दे दिया। महज आधे घंटे के भीतर धनखड़ राष्ट्रपति भवन पहुंचे, राष्ट्रपति से मुलाकात की और अपना इस्तीफा सौंप दिया। बाद में राष्ट्रपति ने इस्तीफा स्वीकार भी कर लिया। उसी सूत्र का यह भी दावा है कि अगर धनखड़ शीर्ष नेतृत्व की सलाह नहीं मानते, तो प्लान-बी के तहत उनके खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही शुरू करने की संभावना भी मौजूद थी, लेकिन धनखड़ ने अपने पद की गरिमा और मर्यादा को बनाए रखते हुए पार्टी की सलाह का पालन किया और एक क्षण भी गंवाए बिना राष्ट्रपति भवन जाकर इस्तीफा दे दिया।

3 बजे की घटना से पहले ही धनखड़ 'ऑपरेशन सिंदूर' पर एक घंटे की चर्चा की अनुमति दे चुके थे, जिसमें खरगे ने सरकार पर सीधा हमला बोला था। इसके अलावा, नेतृत्व इस बात से भी वाकिफ था कि धनखड़ एक पीआर अभ्यास के रूप में विपक्ष के प्रमुख नेताओं जिनमें निलंबित सांसद संजय सिंह भी शामिल हैं, जिन्होंने राज्यसभा में उनके महाभियोग की मांग उठाई थी, उनके साथ डिनर मीटिंग्स आयोजित कर रहे थे। धनखड़ द्वारा जस्टिस वर्मा पर बहस को अनुमति देना, एक ऐसा मुद्दा जिससे सरकार टकराव से बचना चाहती थी, एक और विवादास्पद पहलू बन गया। संसद में फ्लोर मैनेजर इस तरह की बहस से बचने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन धनखड़ ने अपेक्षित रुख से हटते हुए इसे अनुमति दे दी। इन घटनाओं के बाद, माना जाता है कि शीर्ष नेतृत्व ने सीधे एक फ़ोन कॉल के माध्यम से धनखड़ से नाराजगी जाहिर की, जो उनके इस्तीफे से ठीक पहले हुआ। सोमवार को बिजनेस एडवाइजरी कमेटी की बैठक के दौरान भी तनाव की स्थिति बनी।

जहां उपराष्ट्रपति पूरे विपक्ष के साथ बैठक में मौजूद थे, कहीं भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा और संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू वहां नदारद थे, जिसे कुछ लोग एक रणनीतिक अनुपस्थिति मानते हैं। धनखड़ ने मंगलवार को कमेटी के सदस्यों को लंच पर आमंत्रित किया था, जो बाहर से तो सौहार्दपूर्ण कदम लगता है लेकिन अंदरूनी तौर पर इसे तनावग्रस्त संबंधों का संकेत भी माना जा रहा है। इसके कुछ ही घंटों बाद धनखड़ ने इस्तीफे की घोषणा कर दी, जिसने सबको चौंका दिया। कुछ पर्यवेक्षकों का मानना है कि यह अनुपस्थिति और समर्थन की कमी धनखड़ के बढ़ते अकेलेपन को भावना को और गहरा कर गई। राजनीतिक विश्लेषकों ने भी इस्तीफे के समय पर हैरानी जताई है और इसको तात्कालिकता पर सवाल उठाया है। कुछ लोगों का मानना है कि इस्तीफा संसद सत्र समाप्त होने तक टाला जा सकता था। इससे यह साफ होता है कि इस्तीफा कोई पूर्व नियोजित या सोचा-समझा कदम नहीं था, बल्कि एक क्षणिक प्रतिक्रिया थी, जिसका निर्णय संभवतः शीर्ष नेतृत्व से आए फोन कॉल के दौरान ही लिया गया। 

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