Tuesday, August, 12,2025

ईश्वर की कृपा रही तो अगस्त 2027 में रिटायर हो जाऊंगा

नई दिल्ली: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने गुरुवार को कहा कि अगर ईश्वर की कृपा रही तो वह अगस्त 2027 में सेवानिवृत्त हो जाएंगे। उन्होंने यह टिप्पणी जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए की।

उन्होंने हल्के फुल्के अंदाज में कहा, मैं सही समय पर, अगस्त 2027 में सेवानिवृत्त हो जाऊंगा। धनखड़ का 14वें उपराष्ट्रपति के रूप में पांच साल का कार्यकाल 10 अगस्त, 2027 को समाप्त हो जाएगा। धनखड़ ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि एक वैश्विक शक्ति के रूप में भारत के उदय के साथ-साथ इसकी बौद्धिक व सांस्कृतिक गरिमा का भी विकास होना चाहिए। उन्होंने कहा कि किसी राष्ट्र की शक्ति उसके विचारों की मौलिकता और मूल्यों की शाश्वतता में निहित होती है।

उन्होंने इस बात पर अफसोस जताया कि स्वदेशी दृष्टिकोण को आदिम अतीत के अवशेष बताकर खारिज कर दिया गया
और स्वतंत्रता के बाद भी चुनिंदा स्मृतियां बरकरार रहीं। धनखड़ ने कहा कि पाश्चात्य सिद्धांतों को सार्वभौमिक सत्य के रूप में प्रचारित किया गया। उन्होंने कहा, यह विलोपन और विनाश का प्रतीक था।

हमने चिंतन, लेखन, दर्शन छोड़ रटना और दोहराना शुरू कर दिया

धनखड़ ने कहा, हमने सोचना, चिंतन करना, लेखन और दर्शन छोड़ दिया। हमने रटना, दोहराना और निगलना शुरू कर दिया। ग्रेड्स (अंक) ने चिंतनशील सोच का स्थान ले लिया। भारतीय विद्या परंपरा और उससे जुड़े संस्थानों को सुनियोजित ढंग से नष्ट किया गया। उपराष्ट्रपति ने भारत के विश्वविख्यात विश्वविद्यालयों का उल्लेख करते हुए कहा कि जब यूरोप के विश्वविद्यालय अस्तित्व में नहीं थे, तब भारत के तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला, वल्लभी और ओदंतपुरी ज्ञान के महान केंद्र थे। धनखड़ ने ज्ञान को व्यापक रूप में समझने का आह्वान करते हुए कहा, ज्ञान केवल ग्रंथों में नहीं होता यह समुदायों में, परंपराओं में, और पीढ़ियों से हस्तांतरित अनुभव में भी जीवित रहता है।

भारत एक सतत सभ्यता

धनखड़ ने कहा कि भारत केवल 20वीं सदी के मध्य में बना राजनीतिक राष्ट्र नहीं है, बल्कि यह चेतना, जिज्ञासा और ज्ञान की प्रवाहित नदी के रूप में एक सतत सभ्यता है। उन्होंने सवाल किया, जो हमारी बुनियादी प्राथमिकता होनी चाहिए थी, वह तो विचार के दायरे में भी नहीं थी। हम अपनी मूल मान्यताओं को कैसे भूल सकते हैं?

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