Tuesday, November, 25,2025

राज्यपाल बिलों को अनिश्चितकाल तक न रोकें: सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया कि राज्यपाल और राष्ट्रपति विधायिका से पारित विधेयकों पर अनिश्चितकाल तक चुप्पी साधकर नहीं बैठ सकते। अदालत ने कहा कि भले ही संविधान में बिलों की मंजूरी के लिए समय सीमा तय नहीं की गई है, लेकिन लंबी और बिना कारण की देरी की स्थिति में सुप्रीम कोर्ट हस्तक्षेप कर सकता है। यह निर्णय उन याचिकाओं पर आया जिनमें राज्यपालों और राष्ट्रपति द्वारा लंबित रखे गए बिलों के लिए तय समय सीमा निर्धारित करने की मांग की गई थी। मामला मूल रूप से तमिलनाडु गवर्नर और राज्य सरकार के बीच हुए विवाद से शुरू हुआ था, जहां कई विधेयक महीनों तक राजभवन में लंबित पड़े रहे।

राज्यपाल के पास सिर्फ तीन संवैधानिक विकल्प

मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि अनुच्छेद 200 और 201 के तहत राज्यपाल तीन ही काम कर सकते हैं। बिल को मंजूरी देना, इसे पुनर्विचार के लिए विधानसभा को लौटाना या इसे राष्ट्रपति के पास भेजना। कोर्ट ने साफ किया कि राज्यपाल के पास 'वीटो पावर' जैसा कोई विकल्प नहीं है कि वे बिल को हमेशा के लिए रोककर रखें। बेंच ने कहा कि राज्यपाल सिर्फ 'स्बर स्टैप' नहीं हैं, लेकिन उनके विवेक का इस्तेमाल भी संवैधानिक सीमाओं के भीतर होना चाहिए।

'डीम्ड असेंट' की धारणा को किया खारिज

पीठ ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि न्यायपालिका विधेयकों पर 'स्वत स्वीकृति' (डीम्ड असेंट) जैसी कोई अवधारणा लागू नहीं कर सकती। अदालत ने कहा कि यह कार्यपालिका के अधिकारों में दखल होगा और शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत के खिलाफ है, जो संविधान की मूल संरचना का हिस्सा है। अदालत ने यह भी कहा कि अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल कर भी न्यायपालिका राज्यपाल या राष्ट्रपति की भूमिका अपने हाथ में नहीं ले सकती। इसलिए यह मान लेना कि समयसीमा गुजरने पर बिल को स्वतः मंजूरी मिल गई, संवैधानिक तौर पर अस्वीकार्य है।

कोर्ट मेरिट में नहीं जाएगा, लेकिन देरी पर निगरानी रखेगा

पीठ ने कहा कि अदालत विधेयकों की विषयवस्तु (मेरिट) में दखल नहीं दे सकती, लेकिन अगर बिल बिना किसी उचित कारण के लंबे समय तक लंबित रखा जाता है तो सुप्रीम कोर्ट सीमित और उपयुक्त निर्देश जारी कर सकता है। यह राष्ट्रपति और राज्यपाल दोनों पर लागू होगा। सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्र सरकार का पक्ष रखा। वहीं तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, पंजाब और हिमाचल प्रदेश जैसे कई विपक्ष-शासित राज्यों ने आरोप लगाया कि राज्यपाल राजनीतिक कारणों से बिलों में देरी कर रहे हैं।

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