Tuesday, August, 12,2025

बिहार में मसौदा मतदाता सूची के प्रकाशन पर रोक से इनकार

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को चुनावी राज्य बिहार में मसौदा मतदाता सूची के प्रकाशन पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि वह निर्वाचन आयोग द्वारा बिहार में कराए जा रहे मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के खिलाफ दायर याचिकाओं पर हमेशा के लिए अंतिम निर्णय करेगा।

न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायाधीश जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा कि वह 29 जुलाई को इस मामले की अंतिम सुनवाई की समय-सारणी तय करेगी। एक गैर सरकारी संगठन की ओर से उपस्थित वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि मतदाता सूची को अस्थायी तौर पर अंतिम रूप नहीं दिया जाना चाहिए और मसौदा मतदाता सूची के प्रकाशन पर अंतरिम रोक लगनी चाहिए। पीठ ने न्यायालय के पिछले आदेश पर गौर किया, जिसमें कहा गया था कि याचिकाकर्ता अंतरिम राहत के लिए अनुरोध नहीं कर रहे थे। पीठ ने कहा कि इसलिए अब ऐसा नहीं किया जा सकता तथा मामले का स्थायी निपटारा किया जाएगा।
शंकरनारायणन ने कहा कि प्रकाशन पर रोक लगाने की अंतरिम राहत पर जोर नहीं दिया गया, क्योंकि शीर्ष अदालत ने आश्वासन दिया था कि मामले को एक अगस्त से पहले सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाएगा। पीठ ने निर्वाचन आयोग के इस कथन पर गौर किया कि एसआईआर के लिए गणना प्रपत्र मसौदा मतदाता सूची के प्रकाशन के बाद भी जमा किए जा सकते हैं।

चुनाव आयोग पुनरीक्षण जारी रखे

सुप्रीम कोर्ट ने निर्वाचन आयोग से कहा कि वह उसके (शीर्ष अदालत के) पहले के आदेश का अनुपालन करते हुए बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया के लिए आधार और मतदाता पहचान पत्र को स्वीकार करना जारी रखे। न्यायालय ने कहा कि दोनों दस्तावेजों के प्रामाणिक होने की धारणा है। शीर्ष अदालत ने सोमवार को कहा कि वह प्रथम दृष्ट्या 10 जुलाई के आदेश से सहमत है और भारत के निर्वाचन आयोग (ईसीआई) ने अपने जवाबी हलफनामे में माना है कि आधार, मतदाता पहचानपत्र और राशन कार्ड स्वीकार किए जा सकते हैं। पीठ ने कहा, जहां तक राशन कार्ड का सवाल है, तो हम यह कह सकते हैं कि उसकी आसानी से जालसाजी की जा सकती है, लेकिन आधार और मतदाता पहचान पत्र की कुछ विश्वसनीयता है और उनके प्रामाणिक होने की धारणा है। आप इन दस्तावेजों को स्वीकार करना जारी रखें। शंकरनारायणन ने कहा कि आधार और वोटर कार्ड स्वीकार करने के चुनाव आयोग के जवाबी हलफनामे में दिए गए दावे के बावजूद, जमीनी रिपोटों से कुछ और ही पता चलता है।

निर्वाचन आयोग की सूची समावेशी

न्यायाधीश सूर्यकांत ने कहा कि निर्वाचन आयोग ने एसआईआर के लिए 11 दस्तावेजों की जो सूची सुझाई थी, वह समावेशी नहीं, बल्कि संपूर्ण थी और वे पहचान के लिए आधार और मतदाता पहचान पत्र, दोनों का इस्तेमाल कर रहे थे। निर्वाचन आयोग की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा कि आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं है और मतदाता पहचान पत्र पर भरोसा नहीं किया जा सकता क्योंकि यह एक संशोधन प्रक्रिया है, अन्यथा ऐसी कवायद का कोई मतलब नहीं था। न्यायाधीश सूर्यकांत ने तब टिप्पणी की, दुनिया का कोई भी दस्तावेज जाली हो सकता है। निर्वाचन आयोग जालसाजी के मामलों से अलग-अलग मामलों में निपट सकता है। सामूहिक बहिष्कार के बजाय, सामूहिक समावेशन होना चाहिए।" द्विवेदी ने कहा कि निर्वाचन आयोग आधार और मतदाता पहचान पत्र, दोनों स्वीकार कर रहा है लेकिन कुछ सहायक दस्तावेजों के साथ।

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