Friday, September, 26,2025

राष्ट्रपति के मामले में होगी संविधान की व्याख्या

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि वह विधेयकों को मंजूरी के लिए राष्ट्रपति को भेजे जाने पर विचार करते समय केवल संविधान की व्याख्या करेगा कि क्या न्यायालय राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों से निपटने के लिए राज्यपालों और राष्ट्रपति के लिए समय सीमा निर्धारित कर सकता है।

प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) बी. आर. गवई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने यह टिप्पणी उस समय की जब सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यदि इस संदर्भ का विरोध करने वाले पक्षों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी अन्य के अलावा आंध्र प्रदेश से संबंधित संवैधानिक प्रावधानों के उदाहरणों का हवाला देंगे, तो उन्हें जवाब दाखिल करने की आवश्यकता है क्योंकि उन्होंने उन पहलुओं पर दलील नहीं दी है।

सीजेआई गवई ने मेहता से कहा, हम अलग-अलग मामलों पर गौर नहीं कर रहे हैं, चाहे वह आंध्र प्रदेश हो, तेलंगाना हो या कर्नाटक, लेकिन हम केवल संविधान के प्रावधानों की व्याख्या करेंगे। और कुछ नहीं। सिंघवी ने राष्ट्रपति संदर्भ पर सुनवाई के छठे दिन अपनी दलीलें पुनः शुरू कीं और संक्षेप में बताया कि विधेयकों के विफल होने का क्या अर्थ है।

सिंघवी ने किसी विधेयक के 'असफल' होने के विभिन्न परिदृश्यों का हवाला देते हुए कहा कि एक उदाहरण में, जब संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए विधेयक लौटाए जाने के बाद राज्यपाल द्वारा इस पर पुनर्विचार के लिए कहा गया हो, तो विधानसभा 'उसे वापस भेजना न चाहे, उसे पारित करना न चाहे, अपनी नीति में बदलाव कर दे तो भी विधेयक स्वाभाविक रूप से विफल हो जाता है। सीजेआई ने सिंघवी से पूछा कि यदि राज्यपाल विधेयक को रोक लेते हैं और उसे विधानसभा में वापस नहीं भेजते तो क्या होगा। इस पर सिंघवी ने कहा, अगर ऐसा होता है, तो फिर विधानसभा को वापस भेजने की यह सारी प्रक्रिया नहीं होगी। पहले के फैसलों में कहा गया था कि जब तक अनुच्छेद 200 के पहले प्रावधान का पालन नहीं किया जाता (जिसके तहत विधेयक को विधानसभा में वापस भेजना आवश्यक है) तब तक विधेयक पारित नहीं हो सकता।

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