Friday, September, 26,2025

दूसरी बार बिल को राष्ट्रपति को नहीं भेज सकते राज्यपाल

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को टिप्पणी की कि कोई भी विधेयक राज्य विधानसभा द्वारा दोबारा पारित करके राज्यपाल को भेजे जाने की स्थिति में वह उसे विचार के लिए राष्ट्रपति को नहीं भेज सकते हैं। शीर्ष अदालत ने विधेयकों को मंजूरी देने के संबंध में राज्यपाल की शक्तियों पर केंद्र से सवाल करते हुए यह टिप्पणी की। ज्ञात रहे कि संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल को विधानसभा द्वारा पारित विधेयक पर या तो अपनी अनुमति देनी होती है या वह अपनी अनुमति रोक सकता है या फिर उसे राष्ट्रपति के विचारार्थ भेज सकता है। इसके तहत राज्यपाल को विधेयक को पुनर्विचार के लिए विधानसभा में वापस भेजने का भी अधिकार है, बशर्ते कि वह धन विधेयक न हो।

प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ की यह टिप्पणी केंद्र के इस रुख के मद्देनजर आई है कि राज्यपाल विधानसभा द्वारा विधेयक को दूसरी बार पारित करने के बाद भी उसे राष्ट्रपति के पास भेजने के अपने अधिकार का इस्तेमाल कर सकते हैं। पीठ ने केंद्र का पक्ष रख रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा, यदि चौथे विकल्प (विधेयक को पुनर्विचार के लिए विधानसभा में वापस भेजने का) का प्रयोग (राज्यपाल द्वारा) विधानसभा को पुनर्विचार के संदेश के साथ किया जाता है, तो विधेयक पर मंजूरी न देने वा इसे राष्ट्रपति के पास भेजने का विकल्प समाप्त हो जाता है। विधेयकों को मंजूरी देने के संबंध में राष्ट्रपति के संदर्भ पर सुनवाई के दौरान, पीठ में न्यायाधीश सूर्यकांत, न्यायाधीश विक्रम नाथ, न्यायाधीश पी एस नरसिम्हा और न्यायाधीश ए एस चंदुरकर भी शामिल थे।

पीठ ने कहा कि यदि राज्यपाल विधेयकों को पुनर्विचार के लिए विधानसभा को लौटाए बिना ही उन्हें मंजूरी देने से इनकार कर देते हैं, तो इससे निर्वाचित सरकारें राज्यपाल की मर्जी पर निर्भर हो जाएंगी। पीठ ने कहा, यदि राज्यपाल अनिश्चितकाल तक स्वीकृति रोक सकते हैं, तो बहुमत के समर्थन से गठित सरकारें एक अनिर्वाचित नियुक्त व्यक्ति की दया पर निर्भर होंगी।

न्यायाधीश नरसिम्हा ने कहा कि राज्यपाल की शक्तियों की व्याख्या सीमित नहीं हो सकती। इसे खुला छोड़ दिया जाना चाहिए। संविधान एक जीवंत दस्तावेज है। इसकी व्याख्या स्थिर नहीं रह सकती।

राज्यपाल के पास हैं ये चार विकल्प

शीर्ष अदालत ने कहा कि अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल के पास चार विकल्प है- या तो वह अनुमति दे दें या अनुमति रोक लें या फिर वह विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिए सुरक्षित रख लें। नियम के तहत शक्ति का प्रयोग करते हुए वह विधेयक को पुनर्विचार के लिए विधानसभा को लौटा सकते हैं। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने कहा कि अब, यदि विधेयक सदन द्वारा फिर से पारित कर दिया जाता है और अनुमति के लिए राज्यपाल के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है, तो राज्यपाल अनुमति नहीं रोकेंगे। वह विधेयक को दूसरी बार राष्ट्रपति के विचार के लिए नहीं भेज सकते। न्यायाधीश नरसिम्हा ने केन्द्र की इस दलील पर आपत्ति की कि यदि राज्यपाल ने सहमति नहीं देने का निर्णय लिया तो विधेयक पारित नहीं हो सकेगा। उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 200 की ऐसी व्याख्या राज्यपाल की शक्तियों के प्रतिकूल होगी। उन्होंने कहा कि ऐसे मामले हो सकते हैं, जहां राज्यपाल पहले विधेयक को रोक सकते हैं, इसके लिए कारण बता सकते हैं और संशोधन के लिए विधेयक को विधानसभा को वापस भेज सकते हैं और दूसरी स्थिति में, राज्यपाल बाद में अपना विचार बदल सकते हैं और विधानसभा द्वारा विधेयक में आवश्यक संशोधन किए जाने की स्थिति में उसे मंजूरी दे सकते हैं।

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