Tuesday, August, 12,2025

बिहार में मतदाता सूचियों के पुनरीक्षण को जारी रखने की अनुमति

नई दिल्ली: बिहार विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) को लेकर विपक्ष को बड़ा झटका लगा है। एसआईआर के खिलाफ दायर याचिका पर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में लंबी सुनवाई हुई, जिसमें अदालत ने फिलहाल एसआईआर पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने निर्वाचन आयोग को यह प्रक्रिया जारी रखने की अनुमति देते हुए इसे 'संवैधानिक दायित्व' बताया। हालांकि, कोर्ट ने इस प्रक्रिया के समय को लेकर सवाल जरूर उठाए। कोर्ट ने यह भी कहा कि मतदाता सूची पुनरीक्षण के दौरान आधार कार्ड, वोटर आईडी और राशन कार्ड जैसे दस्तावेजों पर विचार किया जा सकता है। याचिकाकर्ताओं में 10 विपक्षी दलों के नेता शामिल हैं, लेकिन किसी ने भी इस प्रक्रिया पर अंतरिम रोक की स्पष्ट मांग नहीं की थी। सुप्रीम कोर्ट ने दोनों पक्षों की याचिका पर चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया है। विशेष गहन पुनरीक्षण के पक्ष में राज्य सरकारें भी है, उन्हें भी नोटिस जारी किया गया है। जिस पर 28 जुलाई को सुनवाई होगी।

... अब थोड़ी देर हो चुकी है

सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने बिहार में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के समय को लेकर सवाल उठाते हुए निर्वाचन आयोग से कहा कि यह कदम पहले उठाया जाना चाहिए था, अब इसमें देर हो चुकी है। हालांकि, कोर्ट ने यह दलील खारिज कर दी कि आयोग को यह प्रक्रिया चलाने का अधिकार नहीं है। न्यायालय ने कहा कि एसआईआर एक महत्वपूर्ण लोकतांत्रिक प्रक्रिया है, जो मतदाता अधिकार और लोकतंत्र की नींव से जुड़ी हुई है।

सुप्रीम कोर्ट ने मांगा जवाब

सुप्रीम कोर्ट ने निर्वाचन आयोग से तीन अहम सवालों पर जवाब मांगा- क्या आयोग को मतदाता सूची में संशोधन, अपनाई गई प्रक्रिया और पुनरीक्षण का समय तय करने का अधिकार है? इस पर आयोग की ओर से पेश अधिवक्ता द्विवेदी ने कहा कि समय-समय पर सूची में नाम जोड़ने या हटाने के लिए पुनरीक्षण आवश्यक है और एसआईआर इसी का हिस्सा है। उन्होंने पूछा कि अगर आयोग को यह अधिकार नहीं है, तो फिर यह कार्य कौन करेगा?

पुनरीक्षण को बिहार चुनाव से क्यों जोड़ रहे ?

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान जस्टिस जॉयमाल्या बागची ने सवाल उठाया कि एसआईआर को नवंबर में होने वाले बिहार चुनाव से क्यों जोड़ा जा रहा है, जबकि यह प्रक्रिया चुनावों से स्वतंत्र हो सकती है। वहीं, चुनाव आयोग के वकील ने आश्वासन दिया कि किसी को भी सुनवाई का अवसर दिए बिना मतदाता सूची से बाहर नहीं किया जाएगा। उन्होंने कहा कि आयोग एक संवैधानिक संस्था है, जिसका अस्तित्व मतदाताओं पर आधारित है। आयोग धर्म, जाति के आधार पर भेदभाव नहीं करता। चुनाव आयोग ने कोर्ट को बताया कि 60 प्रतिशत लोगों के सत्यापन पहले ही आ चुके हैं, जबकि 40 प्रतिशत लोगों का सत्यापन बाकी है, जो कि चुनाव से पहले पूरा हो जाएगा। बता दें कि कांग्रेस, एनसीपी, शिवसेना (यूबीटी) समेत कई विपक्षी दलों ने इस फैसले के खिलाफ याचिकाएं दायर की हैं।
 

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