Wednesday, November, 05,2025

अनुपातिक प्रणाली से होता है राष्ट्रपति-उपराष्ट्रपति का चुनाव

नई दिल्ली: अब तक पांच लोकसभा चुनाव और 130 से अधिक विधानसभा चुनावों में इस्तेमाल की जा चुकी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) का इस्तेमाल राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, राज्यसभा और राज्य विधान परिषद चुनावों में नहीं किया जा सकता। इसकी वजह यह है कि ये मशीन लोकसभा और विधानसभाओं जैसे प्रत्यक्ष चुनावों में मत संग्रहक के तौर पर काम करने के लिए डिजाइन की गई हैं, जिसमें मतदाता अपनी पसंद के उम्मीदवार के नाम के सामने वाला बटन दबाते हैं और सबसे ज्यादा वोट पाने वाले को निर्वाचित घोषित कर दिया जाता है। लेकिन राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव एकल संक्रमणीय मत (सिंगल ट्रांसफेरेबल वोट) के माध्यम से आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अनुसार होते हैं।

कैसे होता आनुपातिक प्रणाली में चुनाव

आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अंतर्गत एकल संक्रमणीय मत के माध्यम से प्रत्येक मतदाता उतनी ही वरीयताएं अंकित कर सकता है, जितने उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे होते हैं। उम्मीदवारों के लिए ये प्राथमिकताएं मतदाता द्वारा मतपत्र के स्तंभ 2 में दिए गए स्थान में उम्मीदवारों के नामों के सामने वरीयता क्रम में 1, 2, 3, 4, 5 इत्यादि अंक दर्ज करके अंकित की जाती हैं। अधिकारियों ने बताया कि ईवीएम इस मतदान प्रणाली को पंजीकृत करने के लिए डिजाइन नहीं की गई हैं। ईवीएम मत संग्रहक होती हैं और आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के तहत मशीन को वरीयता के आधार पर मतों की गणना करनी होगी और इसके लिए एक बिलकुल अलग तकनीक की आवश्यकता पड़ेगी। दूसरे शब्दों में, एक अलग प्रकार की ईवीएम की आवश्यकता होगी।

  • ईवीएम को मत संग्रहक के रूप में किया गया है डिजाइन
  • ज्यादा मत पाने वाले को घोषित किया जाता है निर्वाचित
  • वरीयता के आधार पर मतों की नहीं हो सकती गणना

1977 में की गई थी ईवीएम की कल्पना

निर्वाचन आयोग की वेबसाइट के अनुसार, ईवीएम की कल्पना सबसे पहले 1977 में की गई थी और इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (ईसीआईएल), हैदराबाद को इसे डिजाइन करने एवं विकसित करने का काम सौंपा गया था। वर्ष 1979 में एक प्रोटोटाइप विकसित किया गया, जिसे 6 अगस्त 1980 को निर्वाचन आयोग द्वारा राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के समक्ष प्रदर्शित किया गया।

1998 में खुली ईवीएम के उपयोग की राह

ईवीएम के प्रयोग पर आम सहमति 1998 में ही बन सकी और मध्य प्रदेश, राजस्थान तथा दिल्ली के 25 विधानसभा क्षेत्रों में इसका उपयोग किया गया। मई 2001 में तमिलनाडु, केरल, पुडुचेरी और पश्चिम बंगाल में हुए विधानसभा चुनावों में सभी विधानसभा क्षेत्रों में ईवीएम का इस्तेमाल किया गया था। तब से, निर्वाचन आयोग हर राज्य के चुनाव में ईवीएम का इस्तेमाल करता रहा है।

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