Tuesday, December, 16,2025

हाई कोर्ट का सख्त संदेशः कानून से ऊपर कोई नहीं

जयपुर: राजस्थान हाई कोर्ट की जयपुर पीठ ने एक महत्वपूर्ण एवं रिपोर्टेबल फैसले में एक्सिस बैंक को कड़ी फटकार लगाते हुए स्पष्ट किया कि कानून और अदालत के आदेशों से कोई भी व्यक्ति या संस्था ऊपर नहीं है, चाहे वह कितनी ही बड़ी क्यों न हो। जस्टिस अनूप कुमार ढंड की एकल पीठ ने बैंक की याचिका खारिज करते हुए निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखा। जस्टिस अनूप कुमार ढंड ने अपने फैसले में कहा कि बैंक ने जानबूझकर तथ्यों को छिपाया, जिससे डीआरटी भ्रमित हुआ। अदालत ने स्पष्ट किया कि न्यायालय के आदेशों का उल्लंघन लोकतंत्र की बुनियाद नियम के शासन-पर सीधा प्रहार है। बैंक जैसी संस्थाओं से कानून का पालन करने की अपेक्षा की जाती है। कोर्ट ने संयम बरतते हुए याचिका खारिज कर दी, लेकिन यह स्पष्ट संदेश दिया कि कानून सभी के लिए समान है। यह मामला कोटा जिले के बापावर क्षेत्र का है, जहां वर्ष 2011 में सैकड़ों किसानों के साथ बड़े पैमाने पर धोखाधड़ी की गई थी।

कुछ व्यापारियों ने किसानों को उनकी कृषि उपज ऊंचे दामों पर बेचने का लालच देकर गोदामों में जमा करवाई, लेकिन कच्ची
रसीदें देकर फरार हो गए। जांच में सामने आया कि इन व्यापारियों ने किसानों की उपज को अपनी फर्मों के नाम पर दर्शाकर एक्सिस बैंक से करीब 9 करोड़ रुपए का ऋण ले लिया। पुलिस ने 418 से अधिक किसानों की शिकायतों पर एफआईआर दर्ज की।

ट्रायल कोर्ट से SC तक आदेश बरकरार

जांच के दौरान चार गोदामों में करीब 57,911 क्विंटल नाशवान कृषि उपज मिली। ट्रायल कोर्ट ने वर्ष 2012 में इस उपज को नीलाम करने तथा प्राप्त राशि को अदालत के नाम से एक्सिस बैंक में फिक्स्ड डिपॉजिट (एफडीआर) में जमा कराने का आदेश दिया। इस आदेश को बाद में हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने भी बरकरार रखा।

बैंक ने FDR की राशि खुद समायोजित की

इसके बावजूद बैंक ने बाद में ऋण वसूली अधिकरण (डीआरटी) से प्राप्त एक आदेश के आधार पर एफडीआर की लगभग 8.20 करोड़ रुपए की राशि अपने खाते में समायोजित कर ली। निचली अदालत ने इसे न्यायालय की अवमानना मानते हुए 16 अक्टूबर 2025 को बैंक को ब्याज सहित पूरी राशि वापस जमा कराने का आदेश दिया। साथ ही चेतावनी दी गई कि आदेश की पालना नहीं होने पर बैंक के सीईओ एवं शाखा प्रबंधक के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।

कोर्ट में बैंक की दलील, सरकार का कड़ा विरोध

बैंक ने हाई कोर्ट में दलील दी कि डीआरटी के 20 अप्रैल, 2018 के आदेश से उसे राशि समायोजित करने की अनुमति मिली थी। वहीं राज्य सरकार एवं अन्य पक्षों ने तर्क दिया कि एफडीआर अदालत की संपत्ति थी और बैंक ने डीआरटी के समक्ष महत्वपूर्ण तथ्यों को छिपाकर आदेश प्राप्त किया। बैंक ने यह तथ्य नहीं बताया कि ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट पहले ही इस संबंध में स्पष्ट आदेश दे चुके थे।

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