Tuesday, November, 04,2025

सरकार सख्त, बस ऑपरेटर आज तय करेंगे अगली रणनीति

जयपुर: राजस्थान में निजी और स्लीपर बस संचालकों की हड़ताल अब नए स्तर पर पहुंच गई है। सरकार की कार्रवाई और सख्त रुख के बीच सोमवार को जयपुर में सभी बस ऑपरेटरों की एक अहम बैठक बुलाई गई है। इस बैठक में हड़ताल को लेकर आगे की रणनीति तय की जाएगी। बैठक में स्लीपर बस, लोक परिवहन, स्टेज कैरिज, कॉन्ट्रैक्ट कैरिज, ग्रामीण बस सेवा, स्कूल परमिट और मिनी बस संगठनों के पदाधिकारी शामिल होंगे। उधर, राज्य सरकार ने बस संचालकों को स्पष्ट संदेश दिया है कि नियमों का उल्लंघन बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। डिप्टी सीएम प्रेमचंद बैरवा ने कहा कि यात्रियों की सुरक्षा सरकार की पहली प्राथमिकता है। ऐसे में प्राइवेट बसें नॉर्म्स के अनुसार चलें, मनमानी मॉडिफिकेशन गलत है।

अगर बसें नियमों के मुताबिक होंगी तो किसी को परेशानी नहीं होगी। दोबारा हादसे न हों, इसके लिए परिवहन विभाग कार्रवाई कर रहा है। बैरवा ने बताया कि कांग्रेस सरकार के समय रोडवेज की सिर्फ 600 बसें थीं, जबकि अब 3200 बसें चल रही हैं।
गौरतलब है कि जयपुर और जैसलमेर में हुए बस हादसों के बाद परिवहन विभाग ने स्लीपर बसों पर कार्रवाई तेज कर दी थी, जिसके विरोध में बस संचालक हड़ताल कर रहे हैं। दरअसल, जैसलमेर अग्निकांड के बाद परिवहन विभाग ने प्रदेशव्यापी जांच शुरू की थी। जांच में 2426 बसों में खामियां पाई गई, जिनमें 1281 स्लीपर बसें और 586 अन्य श्रेणी की बसें शामिल हैं। तकनीकी खराबी, फिटनेस सर्टिफिकेट की अनुपलब्धता और फायर सेफ्टी नियमों का उल्लंघन आम पाए गए। परिवहन विभाग ने 14 बसों के परमिट और 61 बसों के आरसी रद्द किए, 255 स्लीपर बसों और 72 अन्य बसों को सीज किया। पाली, जयपुर, चित्तौड़गढ़ और उदयपुर जिलों में सबसे ज्यादा दोष पूर्ण बसें पाई गई।

मनोहरपुर हादसे के बाद 'सुरक्षित सफर अभियान' एक नवंबर से पूरे प्रदेश में शुरू हुआ। अभियान के तहत सभी स्लीपर बसों में
अग्निशमन यंत्र, एग्जिट गेट और सीट हैमर अनिवार्य होंगे। सुरक्षा मानक पूरा न होने पर एक लाख रुपए जुर्माना और बस सीज की जाएगी। विभाग का कहना है कि अब बस संचालकों के लिए कोई छूट नहीं होगी और यात्रियों की सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता होगी। इस सख्ती के चलते निजी बस संचालक हड़ताल कर रहे हैं।

600 से 700 बसें ही राज्य में देती हैं टैक्स

हालांकि राज्य सरकार इस हड़ताल के दबाव में इसलिए नहीं दिख रही है, क्योंकि राजस्थान में करीब आठ हजार स्लीपर बसें चल रही है, पर इनमें से केवल 600 से 700 बसें ही राज्य में टैक्स देती हैं, जबकि बाकी लगभग सात हजार बसें अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में रजिस्टर्ड हैं और वहीं का टैक्स भरती हैं। राजस्थान में होम टैक्स करीब 40 हजार रुपए प्रति माह है, जबकि अन्य राज्यों में यह 8 हजार रुपए से 15 हजार रुपए तक है। इसलिए अधिकांश संचालकों ने बसें बाहर रजिस्टर्ड करा रखी हैं। ऑल राजस्थान कॉन्ट्रैक्ट कैरिज बस संचालक संघ के अध्यक्ष राजेंद्र शर्मा के अनुसार, उन्होंने कई बार टैक्स कम करने की मांग की है लेकिन सरकार ने ध्यान नहीं दिया। उनका कहना है कि अगर टैक्स में राहत और बसों को नियमों के अनुरूप करने के लिए तीन महीने का समय दिया जाए तो हड़ताल खत्म हो सकती है, क्योंकि मौजूदा टैक्स नीति से न केवल बस मालिकों को नुकसान है बल्कि राजस्थान सरकार को भी राजस्व हानि हो रही है।

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