Saturday, October, 11,2025

गरीब, जरूरतमंद और किसानों पर नहीं पड़ेगा अतिरिक्त बोझ

जयपुर: सर्वोच्च न्यायालय के 6 अगस्त, 2025 के आदेश के तहत, राजस्थान की विद्युत वितरण कंपनियों (डिस्कॉम्स) के नियामकीय बकाया (रेगुलेटेड एसेट्स) 31 मार्च, 2028 तक समाप्त करने होंगे। इस आदेश को लागू करने के लिए राज्य सरकार ने जरूरी कदम उठाए हैं, लेकिन मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा के निर्देश पर राज्य सरकार ने बड़ा फैसला लेते हुए यह तय किया है कि गरीब, जरूरतमंद और कृषक उपभोक्ताओं पर कोई अतिरिक्त बोझ न डाला जाए। राज्य में 31 मार्च, 2024 तक डिस्कॉम्स की रेगुलेटेड एसेट्स 49,842 करोड़ रुपए तक पहुंच चुकी थीं। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के पालन में इन बकायों को धीरे-धीरे समाप्त किया जाएगा।

उपभोक्ताओं पर नहीं पड़ेगा प्रभाव

इससे उपभोक्ताओं पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। प्रदेश के कुल 1 करोड़ 35 लाख घरेलू उपभोक्ताओं में से 1 करोड़ 4 लाख उपभोक्ताओं को मुफ्त बिजली योजना में सब्सिडी दी जा रही है। इनमें से 100 यूनिट तक उपभोग करने वाले 62 लाख उपभोक्ताओं का बिजली बिल पूर्णतः शून्य ही रहेगा और 300 यूनिट तक मासिक उपभोग करने वाले 1 करोड 19 लाख 62 हजार घरेलू उपभोक्ताओं पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। राज्य सरकार की ओर से लिए गए निर्णय के अनुसार 51 से 150 यूनिट मासिक उपभोग करने वाले 37 लाख उपभोक्ताओं को 50 पैसे प्रति यूनिट की राहत और मासिक फिक्स्ड चार्ज 250 रुपए से घटाकर 150 रुपए किया गया है। साथ ही, 150 से 300 यूनिट मासिक उपभोग करने वाले उपभोक्ताओं को भी ऊर्जा शुल्क में 35 पैसे प्रति यूनिट की राहत दी जाएगी।

किसानों का अतिरिक्त बिजली खर्च सरकार करेगी वहन

राज्य सरकार प्रदेश के 20 लाख 9 हजार 714 कृषक उपभोक्ताओं का अतिरिक्त भार भी स्वयं वहन करेगी। हालांकि, 300 यूनिट से अधिक उपयोग करने वाले 15 लाख 37 हजार बड़े उपभोक्ताओं को थोड़ी सी अतिरिक्त लागत उठानी पड़ेगी। मुख्यमंत्री भजन लाल सरकार का उद्देश्य कमजोर वर्गों और किसानों पर किसी भी प्रकार का अतिरिक्त बोझ नहीं डालना है और उनकी बिजली सुविधा पहले की तरह बनी रहेगी।

31 मार्च, 2028 तक रिकवर करने होंगे रेगुलेटेड एसेट्स

सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों की बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम्स) को आदेश दिया है कि वे अपनी बकाया नियामकीय परिसंपत्तियां (रेगुलेटेड एसेट्स) 31 मार्च, 2028 तक वसूल करें। इन परिसंपत्तियों का निर्माण उस समय हुआ जब बिजली की दरों में वृद्धि नहीं की गई, जिससे कंपनियों को खर्च पूरे करने के लिए वित्तीय संस्थानों से ऋण लेना पड़ा। रेगुलेटेड एसेट दरअसल बिजली वितरण कंपनियों की वह बकाया राशि है जिसे नियामक आयोग उपभोक्ताओं पर अधिक भार न डालने की मंशा से टैरिफ में शामिल नहीं करता है, लेकिन भविष्य में उन्हें उपभोक्ताओं से वसूल सकता है। सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से अब यह साफ हो गया है कि सभी राज्यों को सुप्रीम कोर्ट की ओर से निर्धारित समय सीमा तक इन रेगुलेटेड एसेट्स की वसूली करनी पड़ेगी, लेकिन राजस्थान में इसका भार उपभोक्ताओं पर नहीं आएगा।

 

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