Monday, April, 21,2025

संस्कृत गौरव के संवाहक बन प्राचीन ज्ञान परंपरा को आगे बढ़ाएं विद्यार्थी

जयपुर: लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने संस्कृत भाषा के प्रसार के साथ उसके ज्ञान को जन-जन तक पहुंचाने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि संस्कृत भाषा सभी भाषाओं की जननी रही है। बिरला गुरुवार को जयपुर स्थित राजस्थान इंटरनेशनल सेंटर में जगदुरु रामानंदाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय के सप्तम दीक्षांत समारोह को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि महापुरुषों ने भारतीय संस्कृति और ज्ञान परंपरा को संस्कृत भाषा में ही रचा।

संस्कृत केवल परंपरा की नहीं, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण और वैचारिक स्पष्टता की भी भाषा है। उन्होंने कहा कि भारत आज योग, आयुर्वेद और दर्शन के माध्यम से विश्व में सम्मान प्राप्त कर रहा है और ऐसे समय में संस्कृत को नई पीढ़ी से जोड़ना हमारी जिम्मेदारी है। बिरला ने कहा कि जब विश्व के प्रमुख विश्वविद्यालयों में संस्कृत पर शोध हो रहे हैं, तब भारत में भी इसे नवाचार, तकनीक और डिजिटल युग से जोड़ना समय की मांग है। विश्वविद्यालय द्वारा योग को तकनीकी दृष्टिकोण से पढ़ाने, पांडुलिपियों के डिजिटलीकरण और ऑनलाइन पाठ्यक्रमों की दिशा में उठाए गए कदमों की सराहना की गई। बिरला ने यह भी स्मरण करावा कि इस विश्वविद्यालय की स्थापना का विचार तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत ने नारायणदास जी महाराज की प्रेरणा से किया था।

उन्होंने विद्यार्थियों का आह्वान किया कि वे भारत की प्राचीन ज्ञान परंपरा और संस्कृत भाषा के गौरव को आगे बढ़ाने का कार्य करें। इस अवसर पर राज्यपाल हरिभाऊ बागडे, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला और शिक्षा एवं पचायत राज मंत्री मदन दिलावर ने विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों को उपाधियां और स्वर्ण पदक प्रदान किए। इस मौके पर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रामसेवक दुबे ने सभी का अभिनंदन किया और विश्वविद्यालय द्वारा संस्कृत के उत्थान के लिए किए जा रहे कार्यों के बारे में प्रगति प्रतिवेदन पढ़ा।

संस्कृत और संस्कृति के संरक्षण के लिए हो कार्य: राज्यपाल

राज्यपाल एवं कुलाधिपति हरिभाऊ बागडे ने कहा कि संस्कृत भाषा नहीं, भारत की महान संस्कृति और मानव संस्कारों की जननी है। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालयों में शिक्षा क्षेत्र में अच्छा मनुष्य बनाने के लिए कार्य किया जाए। उन्होंने गुरु दक्षिणा के अंतर्गत शिक्षार्थियों को अपने विश्वविद्यालयों में पेड़ लगाने का कार्य किए जाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि इससे जहां विद्यार्थी पढ़े हैं, वहां से उनका सदा के लिए आत्मीय नाता बना रहेगा। उन्होंने कहा कि संस्कृत और संस्कृति के संरक्षण के लिए सभी मिलकर कार्य करें। उन्होंने भरतमुनि के नाट्यशास्त्र की चर्चा करते हुए कहा कि शिव का तांडव नृत्य और हमारा तमाम कला कौशल संस्कृत भाषा के जरिए ही जन-जन तक पहुंचा है। राज्यपाल ने संस्कृत ग्रंथों के जरिए भारतीय ज्ञान परम्परा को आगे बढ़ाने का आह्वान किया।

संस्कृत के पुनर्जागरण से ही भारत बनेगा विश्वगुरुः अवधेशानंद गिरि

जयपुर। भारतीय संस्कृति की समृद्ध विरासत को संजोए रखने और आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाने के लिए वैदिक शिक्षा को अपनाना आवश्यक है। जूना अखाडे के प्रमुख स्वामी अवधेशानंद गिरि ने कहा कि आज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी वेदों के महत्व को समझा जा रहा है। जर्मनी जैसे देशों में विश्वविद्यालयों में वेद पढ़ाए जा रहे हैं। ऐसे में भारत, जो वेदों की जन्मभूमि है, उसे वैदिक शिक्षा को पुनः प्रतिष्ठित करना होगा। उन्होंने राजस्थान को सनातन संस्कृति की पुण्यभूमि बताते हुए कहा कि यहां सदैव वेद, शास्त्र और संस्कृति को सम्मान मिला है। उन्होंने राज्य सरकार द्वारा वैदिक शिक्षा एवं संस्कृत बोर्ड के गठन को एक सराहनीय कदम बताते हुए कहा कि इससे वेद विद्यालयों, पाठशालाओं और यज्ञशालाओं को संरक्षित और सशक्त किया जा सकता है। इससे पहले संस्कृत शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने कहा कि संस्कृत विश्व की प्राचीन भाषाओं की सूत्रधार है। उन्होंने संस्कृत शिक्षा को आधुनिक ज्ञान विज्ञान का आधार बताया। दिलावर ने कहा कि राजस्थान देश का पहला राज्य है, जिसने वैदिक एवं संस्कृत शिक्षा को संस्थागत रूप देने के लिए अलग बोर्ड का गठन किया है। प्रदेश में बड़ी संख्या में वैदिक पाठशालाए और यज्ञशालाएं संचालित हो रही हैं।

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