Tuesday, August, 12,2025

कारगिल विजय दिवसः लहू से सनी जमीन पर लहराया था तिरंगा

जयपुर: 26 जुलाई सिर्फ एक तारीख नहीं, बल्कि वो जज्बा है जो हर भारतीय के सीने में धड़कता है। कारगिल की बर्फीली चोटियों पर जब दुश्मन ने कब्जा जमाया, तब हमारे वीरों ने अपने लहू से भारत का अभिमान लिखा। वो 60 दिन भारतीय सेना के साहस और बलिदान की ऐसी अमर गाथा बन गए जिसने पूरे विश्व को चौंका दिया। टाइगर हिल हो या बटालिक, हर पत्थर आज भी 'जय हिंद' की गंज दोहराता है। इन्हीं बर्फीली पहाड़ियों पर जयपुर के कैप्टन अमित भारद्वाज ने 27 वर्ष की आयु में सर्वोच्च बलिदान देकर शौर्य की नई परिभाषा लिखी। वहीं, कर्नल वीरेंद्र सिंह भालोठिया ने बटालिक सेक्टर में अपने नेतृत्व और अद्भुत साहस से दुश्मन को पीछे हटने पर मजबूर किया। कारगिल के रणबांकुरों ने दिखा दिया कि जब बात वतन की हो तो गोली से भी भारी तिरंगे का नाम होता है। कारगिल विजय दिवस हमें याद दिलाता है कि देशभक्ति सिर्फ एक शब्द नहीं, बल्कि वह भावना है जो रणभूमि में अमर हो जाती है। आइए, उन शहीदों को नमन करें जिन्होंने देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दी।

26 साल से अमित भारद्वाज की बहन निभा रही हैं राखी का रिश्ता

रक्षाबंधन एक ऐसा पर्व है जो भाई-बहन के रिश्ते को प्रेम, सुरक्षा और स्नेह के धागे में बांधता है, लेकिन जयपुर की सुनीता धौकरिया के लिए यह सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि एक संकल्प है। ऐसा संकल्प जो वे 26 वर्षों से निभा रही हैं, सैनिकों की कलाई पर दीदी का प्यार बांधने का। कारगिल युद्ध में 1999 में शहीद हुए कैप्टन अमित भारद्वाज, सुनीता के इकलौते भाई थे। उनकी शहादत के एक महीने बाद आया रक्षाबंधन और उसी दिन सुनीता ने तय किया कि उनका रिश्ता खत्म नहीं होगा। उस वर्ष उन्होंने अमित की यूनिट 4 जाट रेजिमेंट को 100 राखियां भेजीं और तब से हर साल यह परंपरा जारी है। सुनीता हर रक्षाबंधन पर उन जवानों को राखी भेजती हैं, जो कभी अमित के साथी थे और आज उनके प्रतीक बन चुके हैं। चाहे यूनिट देश के किसी भी कोने में हो, हर साल कोई न कोई सैनिक उनकी राखी लेने जरूर आता है। यूनिट के जवान उन्हें 'दीदीं' कहकर बुलाते हैं और आज भी राखी से पहले फोन कर कहते हैं 'दीदी' आपकी राखी का इंतजार है।

कर्नल भालोठिया को रणभूमि में ही मिला प्रमोशन

जब 1999 में हमारी बहादुर भारतीय सेना ने दुश्मन की घुसपैठ को विफल कर सरहद की ऊंची चोटियों पर तिरंगा फहराया, उस महान विजय के अनेक नायकों में एक नाम है कर्नल वीरेंद्र सिंह भालोठिया। वे बटालिक सेक्टर में इंफैंट्री बटालियन के कमांडर थे। कर्नल भालोठिया ने बताया कि बटालिक की कड़कड़ाती ठंड, ऊंचे पहाड़ और दुश्मन की लगातार गोलाबारी के बीच उन्होंने न केवल अपने सैनिकों का नेतृत्व किया, बल्कि साहस और रणनीति के दम पर भारी मुश्किलों को पार किया। उनके अदम्य साहस को देखकर तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल वेद प्रकाश मलिक ने युद्धस्थल पर ही उन्हें पदोन्नत किया, यह एक अनूठा सम्मान था। उनकी बहादुरी के लिए उन्हें सेना मेडल (वीरता) और आतंकवाद विरोधी अभियानों में विशिष्ट सेवा मेडल से सम्मानित किया गया। वे न केवल एक उत्कृष्ट सेनानी थे, बल्कि एक सच्चे नेता भी थे जिन्होंने हमेशा अपने जवानों की सुरक्षा को सर्वोपरि रखा। कारगिल विजय दिक्स के इस पावन अवसर पर हम कर्नल भालोठिया जैसे उन सभी वीरों को नमन करते हैं जिन्होंने अपने साहस और समर्पण से देश को गर्व से भर दिया और हमें सिखाया कि सच्चा नेतृत्व वही होता है जो हर चुनौती में सबसे आगे खड़ा होता है।

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