Friday, October, 10,2025

अगर सुन लेते पुकार तो बच जाती आठ जिंदगियां...

जयपुर: राजधानी जयपुर के एसएमएस ट्रोमा सेंटर में रविवार देर रात लगी आग ने न सिर्फ आठ जिंदगियां निगल लीं, बल्कि राजस्थान की स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल भी खोलकर रख दी। आगजनी की यह घटना किसी हादसे से ज्यादा मानव निर्मित त्रासदी बन गई, जहां परिजन मदद को पुकारते रहे और जिम्मेदार अपनी "ड्यूटी निभाने के नाम पर मौन तमाशबीन बने रहे। रात करीब 12 बजे न्यूरो सर्जरी आईसीयू में भर्ती 11 गंभीर मरीजों में से 6 की मौके पर ही जलकर मौत हो गई। वहीं, पास के सेमी आईसीयू के दो मरीजों की जान शिफ्टिंग के दौरान और ऑक्सीजन की कमी से चली गई। कुल मिलाकर 8 परिवारों के चिराग बुझ गए और सवाल यह छोड़ गए कि क्या यह आग सिस्टम की अंधी संवेदनहीनता से नहीं भड़की थी?

चिंगारी दिखी, पर किसी ने सुनी नहीं

त्रासदी की शुरुआत आईसीयू के पास बने एक स्टोर रूम से हुई, जहां मरीजों के परिजनों ने पहले धुआं और चिंगारियां उठती देखी। उन्होंने तुस्त नर्सिंग स्टाफ और ड्यूटी अफसरों को सूचित किया। मगर हर बार की तरह उनकी बात को "घबराहट" कहकर अनसुना कर दिया गया। 20 मिनट बाद जब स्टोर रूम की आग फॉल्स सीलिंग, एसी और प्लास्टिक शीट्स तक पहुंच गई और पूरा आईसीयू आग की लपटों में घिर गया। परिजन दरवाजे तोड़ने की कोशिश करते रहे, वेंटिलेटर पर पड़े मरीज मदद के इंतजार में दम तोड़ते रहे, लेकिन स्टाफ बाहर निकल चुका था। मृतकों के परिजन हादसे के बाद शिकायत करते नजर आए कि बस पांच मिनट पहले सुन लिया होता, तो हमारे परिजन जिंदा होते।

देर रात ही पहुंच गए थे मुख्यमंत्री... हुए भावुक

मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने मानवीय संवेदनशीलता दिखाते हुए रात 2:30 बजे ही एसएमएस अस्पताल पहुंचकर स्थिति का जायजा लिया। इस दौरान वे बेहद भावुक नजर आए। मुख्यमंत्री ने मृतकों के परिवारों को 10-10 लाख रुपए के मुआवजे की घोषणा की और वरिष्ठ आईएएस इकबाल खान की अध्यक्षता में 6 सदस्यीय जांच समिति गठित की।

चिकित्सा मंत्री की सुस्ती

घटना पर चिकित्सा मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर का रुख भी सवालों में है। जहां मुख्यमंत्री रात को ही पहुंच गए, वहीं मंत्री 17 घंटे बाद मौके पर आए। सोशल मीडिया पर उन्होंने 9 घंटे बाद बयान जारी किया। मंत्री ने कहा, "कमेटी गहन जांच करेगी और दोषियों पर सख्त कार्रवाई होगी।" राजनीतिक हल्कों में चिकित्सा मंत्री की लेटलतीफी की चर्चा होती रही।

XEN निलम्बित, फायर सेफ्टी एजेंसी पर FIR

घटना के बाद एक्शन लेते हुए सरकार ने एसएमएस अधीक्षक डॉ. सुशील भाटी और ट्रोमा सेंटर प्रभारी डॉ. अनुराग धाकड़ को पद से हटा दिया गया। अधिशाषी अभियंता मुकेश सिंघल को निलंबित किया गया और फायर सेफ्टी एजेंसी एसके इलेक्ट्रिक कंपनी की निविदा निरस्त कर एफआईआर दर्ज करने के निर्देश दिए गए। वहीं, सरकार ने एसएमएस अधीक्षक का कार्यभार डॉ. मृणाल जोशी व डॉ. बीएल यादव को ट्रोमा सेंटर के प्रभारी की जिम्मेदारी सौंपी है। दोनों के सामने पटरी से उत्तरी व्यवस्था को दुरस्त करने की चुनौती होगी।

फायर, स्मोक और स्प्रिंट का त्रिकोण

जिस स्टोर से आग लगी, वहां रूई, स्प्रिंट और ज्वलनशील कचरे का ढेर था। एक चिंगारी ने इन सबको लपेट लिया। फॉल्स सीलिंग और एसी के पिघलने से गर्म प्लास्टिक की चादरें मरीजों पर गिरने लगीं। पलभर में आग, धुआं और अफरा-तफरी ने अस्पताल को मौत के कुंड में बदल दिया। प्रत्यादर्शियों के अनुसार पास के सेमी आईसीयू में भी स्थिति भयावह थी, ऑक्सीजन की कमी और धुएं में घुटन से दो मरीजों की शिफ्टिंग के दौरान मौत हो गई। फिर भी प्रशासन इन्हें आग से मौत मानने से इनकार कर रहा है।

जयपुर स्थित एक अस्पताल में आग लगने से हुई जान-माल की हानि अत्यंत दुखद है। जिन लोगों ने अपने प्रियजनों को खोया है, उनके प्रति मेरी संवेदना। पायलों के शीघ्र स्वस्थ होने की कामना करता हूं। सभी नागरिकों से अपील है कि वे घायलों और उनके परिवारों के प्रति संवेदनशील और सहायक बने। नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री

SMS में आग लगने की घटना अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। अस्पताल पहुंचकर चिकित्सकों एवं अधिकारियों से जानकारी ली और त्वरित राहत कार्य सुनिश्चित करने के निर्देश दिए। मरीजों की सुरक्षा, इलाज और प्रभावित लोगों की देखभाल के लिए हरसंभव कदम उठाए जा रहे है और स्थिति पर लगातार नजर रखी जा रही है। भजनलाल शर्मा, मुख्यमंत्री

हादसे की न्यायिक जांच हो

अग्निकांड के बाद पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अस्पताल का दौरा किया। गहलोत ने मृतकों के परिजनों से मिलकर उन्हें ढांढस बंधाया और उन्होंने कहा कि यह हादसा दिल दहला देने वाला है, लेकिन सरकार ने मृतकों के परिजनों के प्रति कोई संवेदनशीलता नहीं दिखाई। उन्होंने इस घटना की निष्पक्ष जांच की मांग की।

आग बुझी, पर अब भी सुलग रहे सवाल

ए में ये सिर्फ आग की घटना नहीं की बोरक सएमएस टोमा सेंटर के न्यूरो सर्जरी आईसीयू सिस्टम की सुस्ती से जलती हुई संवेदना थी। यह त्रासदी उन आठ परिवारों के लिए अंत नहीं, बल्कि प्रशासनिक लापरवाही का जीवंत सबूत है। फायर सेफ्टी की फाइलों पर करोड़ों के बजट पास होते रहे हैं, मेंटीनेंस ठेकेदार बदलते रहे, पर जमीनी हालात जस के तस रहे। हर हादसे के बाद जांच समिति बनती है, रिपोर्ट आती है और फिर फाइलों में दफन हो जाती है, जब तक कोई अगली चिंगारी न दिखे। राज्य का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल अगर इस तरह असुरक्षित है, तो छोटे शहरों के अस्पतालों में हालात का अंदाजा लगाया जा सकता है। घटना में अपनों को गंवा चुके एक परिजन ने कहा "हम डॉक्टरों पर भरोसा करके यहां अपनों की जिन्दगी बचाने आए थे, लेकिन यहां तो हम अपनों को गंवा बैठे।"

सवाल, जो अब भी जवाब मांगते हैं?

  • जब परिजनों ने पहले ही चेताया था, तो स्टाफ ने अनदेखी क्यों की?
  • फायर सिस्टम चालू क्यों नहीं था?
  • आईसीयू के पास ज्वलनशील पदार्थों का स्टोर किसने बनाया?
  • क्या अस्पताल में कोई आपात योजना थी?
  • क्या जांच से पहले सबूत मिटाना आपराधिक कृत्य नहीं है?
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