Tuesday, December, 16,2025

देश में 3 साल में सरकारी अनुमति से 59,882 हेक्टेयर वन भूमि का सफाया

जयपुर: पर्यावरण के खराब होने का दंश झेल रहे देश में सरकारी तौर पर धड़ाधड़ वनों को साफ करने की अनुमति दी जा रही है। देश में विकास के नाम पर 3 साल में सरकारी अनुमति से 59,882 हेक्टेयर वन भूमि का सफाया किया जा चुका है। खास बात ये है कि विकास के नाम जंगलों को साफ करने की अनुमति ऐसे राज्यों में भी दी जा रही है, जो हरियाली के मामले में बेहद कमजोर हैं। महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, गुजरात, ओडिशा और राजस्थान में वन भूमि के उपयोग की ज्यादा अनुमति मांगी जा रही है। अकेले मध्यप्रदेश में 31 मार्च, 2024 तक ढांचागत विकास और विभिन्न परियोजनाओं के नाम पर 14,157 हेक्टेयर वन भूमि के उपयोग को स्वीकृति दी दी गई है। गुजरात, राजस्थान जैसे राज्य, जिनका बड़ा भू-भाग रेगिस्तानी माना जाता है, यहां भी इस तरह की स्वीकृति देने में परहेज नहीं किया गया। ऐसी स्वीकृति के मामले में गुजरात और राजस्थान टॉप फाइव राज्यों में शुमार हैं। हालांकि वन भूमि के उपयोग की स्वीकृति को लेकर केंद्र और राज्य सरकारों का दावा है कि जहां भी वृक्ष नष्ट होते हैं, उनकी भरपाई दोगुने पौधरोपण के साथ की जाती है।

राजस्थान में दस साल में 87.96 वर्ग किमी भूमि हस्तांतरित

पिछले दस वर्षों में, 2014-15 और 2023-24 के बीच देश में 1,734 वर्ग किलोमीटर वन भूमि का विकास और गैर-वनीय उपयोग के लिए हस्तांतरण किया गया है। राजस्थान में दस साल में 87.96 वर्ग किलोमीटर भूमि हस्तांतरित की गई। राजस्थान में ज्यादातर भूमि में बदलाव खनन, सड़क, तेल कंपनियों को आवंटन के लिए किया गया। केंद्र सरकार के अनुसार, गैर-वनीय उपयोग के लिए वन भूमि का अधिकतम हस्तांतरण मध्य प्रदेश में दर्ज किया गया। पिछले दस वर्षों में राज्य के 385.52 वर्ग किलोमीटर वन भूमि को गैर-वनीय उपयोग की अनुमति दी गई।

भूमि हस्तांतरण बड़ा घोटाला

वन भूमियों को विकास के नाम पर देने के मामलों में देश भर में कई बड़े घोटाले सामने आए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने मई में पुणे के कोंढवा बुद्रुक में 11.89 हेक्टेयर आरक्षित वन भूमि के आवंटन और उसके बाद की बिक्री को अवैध घोषित कर दिया, जिसे मूल रूप से एक निजी परिवार को दिया गया था और बाद में एक हाउसिंग सोसायटी को हस्तांतरित कर दिया गया था। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) बीआर गवई, जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह और जस्टिस के विनोद चंद्रन की पीठ ने न केवल इस विशिष्ट आवंटन और संबंधित पर्यावरणीय मंजूरी को रद्द कर दिया, बल्कि वन भूमि के दुरुपयोग पर नकेल कसने के लिए विशेष जांच दल के गठन के लिए अखिल भारतीय निर्देश भी जारी किए।

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