Monday, April, 21,2025

वक्फ कानून पर तत्काल रोक से सुप्रीम कोर्ट का इनकार

नई दिल्ली: देश में वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। इस कानून को चुनौती देने वाली 70 से अधिक याचिकाओं पर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। कांग्रेस समेत कई विपक्षी दल और मुस्लिम संगठन इस कानून का विरोध कर रहे हैं। सुनवाई के दौरान अदालत ने नए कानून के कई प्रावधानों पर गंभीर सवाल उठाए, विशेष रूप से 'वक्फ बाय यूजर' प्रावधान को हटाने को लेकर चिंता जाहिर की। चीफ जस्टिस संजीव खत्रा, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने सुनवाई की। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि फिलहाल वक्फ अधिनियम पर कोई रोक नहीं लगाई जाएगी, लेकिन केंद्र को जवाब दाखिल करना होगा।

आप अतीत को दोबारा नहीं लिख सकते

कोर्ट ने कहा कि 'वक्फ बाय यूजर' प्रावधान को खत्म करने से कई वास्तविक मामलों पर असर पड़ेगा और ऐतिहासिक ट्रस्टों की कानूनी स्थिति पर संकट खड़ा हो सकता है। कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा कि यदि कोई संपत्ति लंबे समय से थार्मिक उपयोग में है, तो उसके पास किस दस्तावेज के आधार पर वक्फ की मान्यता दी जाएगी? अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि 'आप अतीत को दोबारा नहीं लिख सकते।' सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि मुसलमानों का एक बड़ा तबका वक्फ अधिनियम के तहत शासित नहीं होना चाहता और इसमें सुधार की आवश्यकता महसूस की जा रही थी।

में मुसलमान हूं या नहीं... सरकार कैसे तय कर सकती है: सिब्बल

सुनवाई के दौरान पीठ ने एक और अहम सवाल उठाया। अगर केंद्र वक्फ बोडों में गैर-मुस्लिम सदस्यों को नियुक्त करने की बात कर रही है, तो क्या वह हिंदू धार्मिक ट्रस्टों में मुसलमानों को भी शामिल करेगी? कोर्ट ने कहा कि पदेन सदस्य धर्म से परे हो सकते हैं, लेकिन वक्फ की मूल प्रकृति को ध्यान में रखते हुए अन्य सदस्यों को मुस्लिम होना चाहिए। वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने भी इस कानून पर आपत्ति जताई। उन्होंने कहा कि वह उस प्रावधान को चुनौती दे रहे हैं जिसमें कहा गया है कि सिर्फ वे लोग वक्फ कर सकते हैं, जो पिछले पांच वर्षों से इस्लाम का पालन कर रहे हो। सिब्बल ने पूछा, सरकार कैसे तय कर सकती है कि मैं मुसलमान हूं या नहीं? और इसलिए वक्फ करने का हकदार हूं या नहीं?

क्या तिरुपति बोर्ड में गैर-हिंदू सदस्य हैं?

कपिल सिब्बल ने कहा, पहले केवल मुस्लिम ही बोर्ड का हिस्सा हो सकते थे, अब हिंदू भी इसका हिस्सा होंगे। यह अधिकारों का हनन है। संविधान का अनुच्छेद 26 कहता है कि सभी सदस्य मुस्लिम होने चाहिए। अभी बोर्ड में 22 में से 10 सदस्य मुस्लिम हैं। अब नए कानून के लागू होने के बाद बिना वक्फ डीड के कोई वक्फ नहीं बनाया जा सकता। CJI जस्टिस संजीव खन्ना ने पूछा, इसमें क्या समस्या है? जस्टिस संजय कुमार ने कहा, हमें कोई उदाहरण दीजिए। क्या तिरुपति बोर्ड में भी गैर-हिंदू सदस्य होते हैं?

विधायिका की सीमा तय की

कोर्ट ने कहा कि संसद (विधायिका) किसी पुराने निर्णय या आदेश को शून्य नहीं घोषित कर सकती, वह केवल कानूनी आधार तय कर सकती है। पीठ ने कहा कि मैंने प्रिवी काउंसिल के फैसलों को भी पढ़ा है। उपयोगकर्ता की ओर से वक्फ को मान्यता दी गई है। अगर आप इसे पहले की तरह नहीं करते हैं, तो यह एक समस्या होगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, कई पुरानी मस्जिदें हैं 14 वीं और 16वीं शताब्दी की जिनके पास रजिस्ट्रेशन या सेल डीड नहीं होगी। सीजेआई ने केंद्र से पूछा कि ऐसी संपत्तियों को कैसे रजिस्टर करेंगे? उनके पास कौन से दस्तावेज होंगे? वक्फ बाय यूजर को मान्यता दी गई है, अगर आप इसे खत्म करते हैं तो समस्या होगी।

आज दो बजे फिर से होगी सुनवाई

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने यह भी पूछा कि क्या इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में ही सुना जाए या फिर इसे किसी हाईकोर्ट को स्थानांतरित किया जाए। हालांकि वरिष्ठ अधिवक्ताओं की दलीलें सुनने के बाद अदालत ने सुनवाई जारी रखने का फैसला किया। कोर्ट ने गुरुवार 2 बजे मामले की अगली सुनवाई तय की है।

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