Friday, September, 26,2025

मुकदमों को फाइल करने में अत्यधिक देरी को नहीं किया जाए माफ

नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय ने सभी अदालतों को नोटिस देते हुए कहा है कि सरकारी लापरवाही को अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि मुकदमों मुकदमों को व फाइल करने में अत्यधिक देरी को माफ नहीं किया जाना चाहिए। ऐसा करना अक्षमता को बढ़ावा देना है।

जस्टिस जे. बी. पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की बेंच ने एक याचिका की सुनवाई के दौरान यह बात कही। सर्वोच्च न्यायालय ने सुनवाई के दौरान कहा कि अगर सरकार देरी से कोई केस दोबारा खोलना चाहती है, तो कोर्ट को इसकी इजाजत नहीं देनी चाहिए। इससे एक प्राइवेट व्यक्ति पर हमेशा तलवार लटकी रहेगी। कर्नाटक हाई कोर्ट ने राज्य के हाउसिंग बोर्ड को 11 साल की देरी के बाद एक जमीन विवाद का केस दोबारा खोलने की इजाजत दी थी।

सर्वोच्च न्यायालय ने इसे न्याय के साथ मजाक बताया। इस मामले में सुनवाई के दौरान सर्वोच्च न्यायालय ने सभी हाई कोर्ट को चेतावनी दी है कि वे सरकार की तरफ से होने वाली अत्यधिक देरी को माफ न करें।

पब्लिक इंटरेस्ट दक्षता, जिम्मेदारी और समय पर निर्णय लेने में

सुप्रीम कोर्ट ने इस दलील को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया कि जनहित के कारण देर को नजरअंदाज किया जा सकता है। बेंच ने कहा कि मामला पब्लिक इंटरेस्ट का है, सिर्फ इसलिए देरी को माफ नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने कहा, पब्लिक इंटरेस्ट सरकारी लापरवाही को माफ करने में नहीं है, बल्कि दक्षता, जिम्मेदारी और समय पर निर्णय लेने को मजबूर करने में है। सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि सरकार को समय पर काम करना चाहिए। क्योंकि हर मामले में वह अपनी निजी क्षमता में नहीं, बल्कि लोगों के ट्रस्टी के रूप में मुकदमा लड़ती है।

क्या है पूरा मामला?

जस्टिस जे. बी. पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की बेंच ने कहा कि बार-बार सरकारी अक्षमता के आधार पर देरी को माफ करना, लिमिटेशन कानूनों के उद्देश्य को खत्म कर देगा। ये कानून निश्चितता और पब्लिक ऑर्डर के लिए बनाए गए है। इस मामले में बोर्ड और एक प्राइवेट व्यक्ति के बीच जमीन को लेकर विवाद 1989 में शुरू हुआ था। 2006 में कोर्ट ने बोर्ड के खिलाफ फैसला दिया था। बोर्ड ने 2017 में 11 साल बाद अपील दायर की, कर्नाटक हाई कोर्ट ने 3,966 दिनों की देरी को माफ कर दिया था।

वक्फ कानून से जुड़े मुद्दों पर फैसला आज

सुप्रीम कोर्ट सोमवार को प्रमुख मुद्दों पर अपना अंतरिम फैसला सुनाएगा। इनमें एक मुद्दा यह है कि क्या वक्फ घोषित की गई संपत्तियों को अदालते वक्फ की सूची से हटा (डिनोटिफाई करना) सकती है या नहीं। इसके साथ ही यह भी देखा जाएगा कि क्या कोई संपत्ति उपयोग के आधार पर वक्फ (वक्फ बाय यूजर) या किसी दस्तावेज के जरिए वक्फ (वक्फ बाय डीड) घोषित की जा सकती है। ये सभी मुद्दे वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान उठे थे। चीफ जस्टिस (सीजेआई) बीआर गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने 22 मई को इन तीनों पर दोनों पक्षों की दलीलों को सुना था, जिसके बाद अंतरिम आदेश सुरक्षित रख लिया गया था। शीर्ष कोर्ट की वेबसाइट पर 15 सितंबर की कार्य सूची के मुताबिक, कोर्ट सोमवार को इस मामले पर अपना आदेश सुनाएगी। इन मुद्दों में एक बड़ा मुद्दा यह है कि अगर किसी जमीन को पहले अदालत ने वक्फ घोषित कर दिया हो, तो क्या सरकार बाद में उसे वक्फ की सूची से हटा सकती है या नहीं। यह मामला वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 से जुड़ा है।

 

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