Friday, June, 27,2025

संविधान सबसे ऊपर, न्यायिक समीक्षा संवैधानिक कार्य: SC

नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी में याद दिलाते हुए कहा है कि संविधान सबसे ऊपर है और न्यायिक समीक्षा एक संवैधानिक कार्य है। शीर्ष अदालत ने यह बात ऐसे समय कही है जब ऐसी कई टिप्पणियां की जा रही हैं कि संसद सर्वोच्च है।

शीर्ष कोर्ट ने यह भी दोहराया कि न्यायिक समीक्षा एक ऐसा कार्य है जो संविधान द्वारा न्यायपालिका को प्रदान किया गया है, और इसलिए, जब न्यायालय विधानों की संवैधानिकता को परखते हैं, तो वे संविधान के ढांचे के भीतर काम कर रहे होते हैं। भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने ये टिप्पणियां की हैं। ऐसा लगता है कि ये टिप्पणियां उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ द्वारा न्यायपालिका के खिलाफ किए गए तीखे हमले के जवाब में की गई हैं। राष्ट्रपति और राज्यपाल द्वारा विधेयकों पर कार्रवाई करने के लिए समयसीमा निर्धारित करने पर सुप्रीम कोर्ट की आलोचना करते हुए धनखड़ ने कहा था कि न्यायपालिका "सुपर संसद" बनने की कोशिश कर रही है। वक्फ संशोधन अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं में सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद, धनखड़ ने कहा था कि संसद सर्वोच्च है और संविधान में संसद से ऊपर किसी भी प्राधिकरण की कल्पना नहीं की गई है।

संविधान के दायरे में काम करती हैं विधायिका, कार्यपालिका व न्यायपालिका

कोर्ट ने यह भी कहा, लोकतंत्र में राज्य की प्रत्येक शाखा, चाहे वह विधायिका हो, कार्यपालिका हो या न्यायपालिका, विशेष रूप से संवैधानिक लोकतंत्र में, संविधान के ढांचे के भीतर काम करती है। यह संविधान ही है जो हम सभी से ऊपर है। यह संविधान ही है जो तीनों अंगों में निहित शक्तियों पर सीमाएं और प्रतिबंध लगाता है। न्यायिक समीक्षा की शक्ति संविधान द्वारा न्यायपालिका को प्रदान की जाती है। संवैधानिकता के साथ-साथ न्यायिक व्याख्या के लिए कानून न्यायिक समीक्षा के अधीन है। इसलिए, जब संवैधानिक न्यायालय न्यायिक समीक्षा की अपनी शक्ति का प्रयोग करते हैं, तो वे संविधान के ढांचे के भीतर काम करते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह शक्ति संविधान निर्माताओं द्वारा अनुच्छेद 32 और 226 द्वारा स्पष्ट रूप से प्रदान की गई है और यह जांच और संतुलन की प्रणाली पर निर्भर करती है। हमारा मानना है कि आम जनता सरकार के तीनों अंगों के बीच के संबंधों और उनकी अलग-अलग भूमिकाओं को जानती है।

भाजपा सांसद दुबे की टिप्पणी दुर्भावनापूर्ण

न्यायालय एक अधिवक्ता द्वारा दायर जनहित याचिका पर विचार कर रहा था, जिसमें न्यायपालिका और भारत के मुख्य न्यायाधीश पर हमला करने वाली टिप्पणियों के लिए भाजपा सांसद निशिकांत दुबे के खिलाफ स्वत संज्ञान लेकर अवमानना कार्यवाही की मांग की गई थी। शीर्ष अदालत ने दुबै की उसके और प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ की गई टिप्पणियों की निंदा करते हुए कहा कि ये दुर्भावनापूर्ण हैं और शीर्ष अदालत के अधिकार को कमतर करती हैं। पीठ ने कहा, हमारा यह दृढ़ मत है कि अदालतें फूलों की तरह नाजुक नहीं हैं जो ऐसे बेतुके बयानों से मुरझा जाएं।। हालांकि पीठ ने याचिका खारिज कर दी थी, लेकिन गुरुवार को उपलब्ध कराए गए अपने आदेश में उसने भाजपा सांसद के खिलाफ तीखी टिप्पणियां कीं।

न्यायिक निर्णय कानूनी सिद्धांतों के अनुसार

शीर्ष अदालत ने कहा कि न्यायिक निर्णय कानूनी सिद्धांतों के अनुसार किए जाते हैं, न कि राजनीतिक, धार्मिक या सामुदायिक विचारों के अनुसार। जब नागरिक न्यायिक समीक्षा की शक्ति के प्रयोग के लिए अदालत से प्रार्थना करते है, तो वे अपने मौलिक और/या कानूनी अधिकारों को आगे बढ़ाने के लिए ऐसा करते हैं। अदालत द्वारा ऐसी प्रार्थना पर विचार करना उसके संवैधानिक कर्तव्य की पूर्ति है।

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