Tuesday, November, 25,2025

टाइगर अभी जिंदा है... नीतीश का 'कमबैक शो

पटना: 'टाइगर अभी जिंदा है' बॉलीवुड की एक लोकप्रिय फिल्म का शीर्षक- जदयू नेता और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की उस राजनीतिक मुद्रा का सार है, जिसमें न कोई थकान है, ना ही राजनीति से संन्यास लेने का इशारा। वर्ष 2020 की तुलना में अपनी पार्टी जनता दल यूनाइटेड (जदयू) को शानदार सफलता दिलाने वाले नीतीश कुमार के लिए यह नारा सटीक प्रतीक बनकर उभरा है। इस विधानसभा चुनाव में 75 वर्षीय मुख्यमंत्री को बहुत कुछ साबित करना था। उनके खिलाफ थकान, सत्ता विरोधी लहर और खराब स्वास्थ्य की अफवाहें चुनाव से पहले खूब फैलीं। इसी बीच, उन्होंने सामाजिक सुरक्षा पेंशन, जीविका, आशा और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के मानदेय में वृद्धि और सबसे चर्चित 'मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना' जैसी कई राहतें तेजी से लागू कीं। इस रोजगार योजना के तहत एक करोड़ से अधिक महिलाओं के बैंक खातों में 10,000 रुपए पहले ही पहुंच चुके हैं। विपक्ष ने इन्हें 'फ्रीबीज' बताते हुए उन पर निशाना साधा। पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने सरकार को 'कॉपीकैट' कहा, जबकि प्रशांत किशोर के सहयोगी पवन वर्मा ने इसे मतदाताओं को रिश्वत बताते हुए निर्वाचन आयोग से कार्रवाई की मांग की।

पीएम मोदी ने नीतीश को हर सभा में सराहा

भाजपा ने इस चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत अपनी पूरी चुनावी मशीनरी झोंक दी, नीतीश कुमार ने एक स्थिर और अनुशासित अभियान चलाया। दिलचस्प रूप से मोदी ने 13 रैलियां और एक रोड शो करने के बावजूद नीतीश कुमार के साथ मंच केवल समस्तीपुर की पहली सभा में साझा किया। लेकिन, हर जनसभा में उन्होंने 'नीतीश बाबू' के कामों की सराहना की और जनता को 'जंगलराज' की वापसी से सावधान किया।

आलोचनाओं से नहीं हुए विचलित

बिहार के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने वाले नीतीश कुमार अपनी आलोचनाओं से बेपरवाह रहे। यहां तक कि उन पर उनके विरोधियों द्वारा लगाए गए इस आरोप का भी कोई असर नहीं पड़ा कि भाजपा उनके साथ 'शिंदे मॉडल' दोहराना चाहती है- जैसे महाराष्ट्र में शिवसेना के नेतृत्व को किनारे किया गया था।

एक और कार्यकाल मिलने पर कयास

अब यह देखना बाकी है कि क्या इंजीनियरिंग स्नातक नीतीश को एक और कार्यकाल दिया जाएगा या भाजपा की यह मांग और मुखर होगी कि बिहार जैसे हिंदी भाषी राज्य में उसकी अपनी पार्टी का मुख्यमंत्री होना चाहिए, जहां अब तक पूर्ण सत्ता उसके हाथ नहीं आई है। नीतीश ने एक समय राजनीति में आने के लिए बिहार बिजली बोर्ड की नौकरी ठुकरा दी थी। लगभग पांच दशक की राजनीति में बार-बार पाले बदलने के कारण उन्हें 'पलटू राम' का उपनाम भी मिला।

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