Tuesday, November, 25,2025

नमो-नीतीश की केमिस्ट्री ने किया 202 सीटों का 'चमत्कार'

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व पर जोरदार मुहर लगाते हुए बिहार की जनता ने एक ऐसा फैसला सुनाया है, जो सिर्फ राजनीतिक नहीं बल्कि बेहद व्यक्तिगत, भावनात्मक और उनकी जिंदगी की सच्चाई से जुड़ा है। 2025 के विधानसभा चुनावों में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) ने बिहार की 243 सीटों वाली विधानसभा में शानदार जीत हासिल की। भाजपा और उसके सहयोगी दलों के गठबंधन ने 200 से ज्यादा सीटें जीतकर प्रचंड बहुमत हासिल किया। नतीजतन, शुक्रवार को बिहार की प्रचंड जीत का जश्न मनाने के लिए भाजपा मुख्यालय में अमित शाह, राजनाथ सिंह और जेपी नड्डा जैसे वरिष्ठ नेताओं की मौजूदगी में प्रधानमंत्री का अब तक का सबसे भव्य स्वागत किया गया।

इस सफलता के मूल में नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार के बीच अनोखी केमिस्ट्री है। लोगों, खासकर महिलाओं और ग्रामीण परिवारों की नब्ज पहचानने की मोदी की अचूक क्षमता ने एक बार फिर रंग दिखाया है। चुनावों से पहले बिहार सरकार ने महिलाओं, युवाओं, बुजुर्गों और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए कई कल्याणकारी योजनाएं शुरू कीं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना की शुरुआत की, जिसके तहत एक करोड़ से ज्यादा महिलाओं को 10,000-10,000 रुपए दिए गए और छह महीने बाद अतिरिक्त सहायता का वादा किया गया। जून और अक्टूबर की शुरुआत के बीच राज्य ने कम से कम 15 बड़े लाभों की घोषणा की, जिनमें उच्च पेंशन, 125 यूनिट तक मुफ्त बिजली, योजनाकर्मियों के लिए बढ़ा हुआ मानदेय, बेरोजगार स्नातकों के लिए मासिक सहायता, नए वकीलों के लिए वजीफा, ब्याज मुक्त छात्र ऋण और कलाकारों के लिए 3,000 रुपए पेंशन शामिल हैं। दिलचस्प बात यह है कि महिला सशक्तीकरण का कार्ड, जिसे मूल रूप से नीतीश कुमार ने पेश किया था, बाद में महिलाओं के प्रति उनकी व्यापक अपील के कारण धीरे-धीरे नरेंद्र मोदी की ओर स्थानांतरित हो गया।

साझेदार पार्टी जनता दल (यूनाइटेड) का नेतृत्व कर रहे नीतीश कुमार ने मोदी के राष्ट्रीय दृष्टिकोण को पूरा करने वाला एक अपरिहार्य स्थानीय आधार - प्रदान किया। साथ मिलकर नमो नीतीश की जोड़ी ने एक शक्तिशाली गठबंधन बनाया, जिसने राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा को क्षेत्रीय ताकत से जोड़ा। नतीजा-- एनडीए का एक बार फिर दबदबा बनाने वाली सीटों की 'चमत्कारी' संख्या, यह साबित करती है कि यह गठबंधन कारगर है।

अमित शाह ने एनडीए के बिहार अभियान को दिशा देने में निर्णायक भूमिका निभाई, उन्होंने राज्य में 19 दिन बिताकर भाजपा की जमीनी रणनीति को व्यक्तिगत रूप से आकार दिया और उसे क्रियान्वित किया। पार्टी के खिलाफ काम कर रहे लगभग 100 बागियों की चुनौती के बावजूद उन्होंने हर एक बागी से व्यक्तिगत रूप से मुलाकात की और उन्हें अपने खेमे में वापस लाने में सफल रहे। सभी स्तरों पर व्यापक संगठनात्मक बैठकें करने वाले एकमात्र केंद्रीय नेता के रूप में उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के दृष्टिकोण से कार्यकर्ताओं में ऊर्जा का संचार किया। 17 सितंबर से 9 नवंबर के बीच शाह ने 10 संगठनात्मक बैठकों की अध्यक्षता की व 35 बड़ी रैलियों को संबोधित किया। एक रोड शो किया और कुल 46 कार्यक्रमों में भाग लिया, जिससे भाजपा और एनडीए को चुनावी बढ़त मिली। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा को भी पार्टी संगठन और जमीनी स्तर पर लामबंदी पर ध्यान केंद्रित करने का श्रेय दिया जाना चाहिए, जिन्होंने एनडीए मशीनरी को ऐसे निर्णायक परिणाम के लिए आवश्यक सटीकता प्रदान की। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी एक स्टार प्रचारक के रूप में उभरे। उन्होंने एक बार फिर साबित कर दिया कि वह पार्टी में तीसरे सबसे लोकप्रिय और भीड़ खींचने वाले नेता हैं। उनकी रैलियों का 100 से ज्यादा सीटों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा। यही नहीं, राजनाथ सिंह, रेखा गुप्ता और धर्मेंद्र प्रधान ने भी इस जीत में अहम भूमिका निभाई।

एनडीए सहयोगियों में चिराग पासवान के नेतृत्व वाली लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) ने अपना सबसे मजबूत चुनावी प्रदर्शन किया। लोजपा (आरवी) ने 29 सीटों पर चुनाव लड़ा और उनमें से 19 पर जीत व बढ़त हासिल की। विपक्ष, खासकर कांग्रेस को बिहार में सबसे बुरे झटकों में से एक का सामना करना पड़ा, सीट हिस्सेदारी और राजनीतिक प्रासंगिकता, दोनों में गिरावट आई और राहुल गांधी का नेतृत्व इस गिरावट के पीछे एक प्रमुख कारक के रूप में उभरा। उनकी विवादास्पद टिप्पणियों खासकर छठ पूजा जैसी सांस्कृतिक परंपराओं का अनादर करने वाली टिप्पणियों ने आबादी के एक बड़े हिस्से को उनसे अलग कर दिया, जिन्होंने इन टिप्पणियों को बिहार के गौरव का अपमान माना।

लालू यादव परिवार में, राघोपुर में तेजस्वी यादव ने एक तनावपूर्ण मुकाबले में जीत हासिल की, जो 16वें दौर की मतगणना तक पीछे चल रहे थे। अंततः उन्होंने लगभग 14,000 वोटों के अंतर से जीत हासिल की। इसके विपरीत, उनके भाई तेज प्रताप यादव को महुआ में करारी हार का सामना करना पड़ा, जहां लोजपा उम्मीदवार संजय कुमार सिंह ने उन्हें 44,997 मतों के निर्णायक अंतर से हराया। हैरानी की बात यह है कि असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम ने 5 सीटें हासिल कीं, जिससे अल्पसंख्यक समुदायों के बीच पार्टी की बढ़ती लोकप्रियता का संकेत मिलता है। दरअसल, यह राज्य में एक नई मुस्लिम ताकत का उदय है। बसपा, हालांकि सीमित संख्या में, एक निर्वाचन क्षेत्र में बढ़त बनाने में कामयाब रही।

मोदी-नीतीश के लिए, यह 'बिहार विजय' एक चुनावी जीत से कहीं बढ़कर है, यह विश्वास की पुनः पुष्टि है। मतदाताओं ने केवल नारों पर वोट नहीं डाला। उन्होंने सम्मान, पहचान और एक ऐसे नेतृत्व के लिए वोट दिया, जो उनके लिए खड़ा हो और मोदी के नेतृत्व में नीतीश के क्षेत्रीय प्रभाव और शाह के अनुशासित अभियान से और भी मजबूत होकर बिहार के लोगों ने ठीक यही पाया।

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