Sunday, October, 05,2025

महिलाओं के योगदान और जोधपुर की जल संरचनाओं को किया रेखांकित

जोधपुर: जोधपुर आर्ट्स वीक (एडिशन 1.0) के तीसरे दिन कला, पारिस्थितिकी और सांस्कृतिक धरोहर का जीवंत उत्सव देखने को मिला, जिसमें शहर के ऐतिहासिक और समकालीन स्थलों पर कार्यशालाएं, वॉकथ्रू और पैनल चर्चायें आयोजित हुईं। राव जोधा डेजर्ट रॉक पार्क में ‘राव जोधा ऐज़ अ लिविंग आर्काइव’ नामक एक गहन और सहभागी कार्यक्रम का आयोजन हुआ, जिसे पाटी × लैंड टीचिंग फेलोज़ ने संचालित किया। इस यात्रा ने मारवाड़ क्षेत्र के इतिहास को उसकी ज्वालामुखीय उत्पत्ति और डायनासोर युग से लेकर वर्तमान पारिस्थितिक और सांस्कृतिक परिदृश्य तक को रेखांकित किया। सुराग-आधारित ट्रेल्स, संवेदी अनुभवों और शिक्षार्थियों द्वारा संचालित कहानी कहने की प्रक्रिया के माध्यम से पार्क को भूविज्ञान, पारिस्थितिकी, लोककथाओं और स्मृतियों का जीवंत अभिलेखागार प्रस्तुत किया गया।

श्री सुमेर स्कूल, वॉल्ड सिटी में सुबह की शुरुआत ‘कतरन दग्हा: स्टिचिंग वर्कशॉप' से हुई, जिसका संचालन कलाकार ऋचा आर्या ने किया। प्रतिभागियों ने इसमें कपड़े को पुनः उपयोग कर थैले और अन्य वस्तुयें बनाने तथा कढ़ाई तकनीक सीखने का अनुभव किया, जो जोधपुर की स्थानीय महिलाओं की रचनात्मकता से प्रेरित था। इसके बाद कलाकार सरूहा किलारू ने प्रतिभागियों को ड्राईपॉइंट प्रिंटमेकिंग की बारीक कला से परिचित कराया, जिसमें एंटाग्लियो तकनीक की खूबसूरती को प्रत्यक्ष अनुभव कराया गया। इसी दौरान ‘पाटी रेज़िडेंसी जोधपुर वॉकथ्रू’ ने दर्शकों को हाउस ऑफ प्रेमचंद की सैर कराई, एक चौथी पीढ़ी का मारवाड़ी हवेली, जिसे समकालीन कला-प्रथाओं के केंद्र के रूप में सुसंवर्धित किया गया है।

एक प्रभावशाली पैनल चर्चा ;पशुपालक धरोहर आज: राजस्थान से सोमालिया तक’ में धकान कलेक्टिव और ऊँट-पशुपालन विशेषज्ञ डॉ. इल्से कोहलर-रोलेफसन ने ऊँट को की-स्टोन स्पीशीज़ और जीवित धरोहर के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया। इस विमर्श ने पारिस्थितिक ज्ञान, महिला श्रम, मौखिक परंपराओं और समकालीन कला-प्रथाओं को जोड़ते हुए जलवायु परिवर्तन के युग में लचीले भविष्य की कल्पना की।

दोपहर बाद का कार्यक्रम ख़ास बाग, जोधपुर में आयोजित हुआ, जहां क्यूरेटर साक्षी महाजन ने कलाकार अवधेश तम्रकार की तोरण-प्रेरित इंस्टॉलेशन का वॉकथ्रू कराया। यह कलाकृति शिल्पकार थान चंद मेहरा के साथ मिलकर बनाई गई थी और इसे श्राइन एम्पायर का सहयोग प्राप्त था। तोरण जिसे परंपरागत रूप से स्वागत और संरक्षण का प्रतीक माना जाता है को इस कृति में एक परतदार सांस्कृतिक स्मृति और समकालीन रूप में पुनर्कल्पित किया गया।

दिन का समापन ख़ास बाग में हुआ, जहां ‘जोधपुर की स्थापत्य विरासत की खोज’ शीर्षक पैनल चर्चा का आयोजन आरएमज़ेड फाउंडेशन के सहयोग से किया गया। इसमें कलाकार आयेशा सिंह, चिला कुमारी सिंह बर्मन, ऋचा आर्या और सरूहा किलारू ने भाग लिया, जबकि कामना आनंद (सीनियर क्यूरेटर, आरएमज़ेड फाउंडेशन) ने क्यूरेटोरियल दृष्टिकोण साझा किया। चर्चा की अध्यक्षता जोधपुर स्थित स्थापत्य इतिहासकार मिमांशा चारण ने की। इस संवाद में विशेष रूप से मैला बाग झलरा पर केंद्रित होकर, महिलाओं के योगदान और जोधपुर की जल संरचनाओं के भूले-बिसरे इतिहासों को रेखांकित किया गया।

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