Friday, September, 26,2025

विधवा-निसंतान महिला की संपत्ति पर ससुराल का अधिकार

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि हिंदू समाज में विवाह के बाद महिला का गोत्र बदल जाता है। ऐसे में यदि कोई हिंदू महिला विधवा और निसंतान अवस्था में बिना वसीयत के मृत्यु को प्राप्त होती है, तो उसकी संपत्ति उसके मायके वालों के बजाय ससुराल वालों को मिलेगी।

यह मामला हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा 15(1) (बी) को चुनौती देने वाली याचिकाओं से जुड़ा हुआ है। इस प्रावधान के अनुसार, यदि विवाहित, निसंतान हिंदू महिला की मौत होती है, तो उसकी संपत्ति उसके पति के उत्तराधिकारियों को मिलती है, न कि उसके माता-पिता को। सुप्रीम कोर्ट में वर्तमान में अधिनियम की धारा 15 और 16 को चुनौती दी गई है। इन प्रावधानों के तहत बिना वसीयत मरी हिंदू महिला की संपत्ति पहले पति के परिवार को जाती है। अदालत ने मामले पर सभी पक्षों को सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया है।

मायके से भरण-पोषण नहीं मांग सकती

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की एकमात्र महिला जज, जस्टिस बी.वी. नागरत्ना ने कहा कि हिंदू समाज की परंपराओं और सामाजिक संरचना को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। उन्होंने स्पष्ट किया कि महिला के अधिकार महत्वपूर्ण हैं, लेकिन अधिकार और परंपरा के बीच संतुलन बनाए रखना आवश्यक है। जस्टिस नागरत्ना ने कहा, शादी के बाद महिला अपने पति और ससुराल वालों की जिम्मेदारी होती है। पति की मौत के बाद वह वसीयत बना सकती है या पुनर्विवाह भी कर सकती है। किंतु महिला अपने माता-पिता या भाई-बहनों से भरण-पोषण का दावा नहीं कर सकती।

कोविड-19 से मरे दंपती की संपत्ति पर दोनों की माताओं का दावा

सुप्रीम कोर्ट के सामने दो मामलों का जिक्र हुआ। पहले मामले में एक दंपती की कोविड-19 से मृत्यु हो गई। इसके बाद पति और पत्नी की माताओं ने उनकी संपत्ति पर दावा किया। दूसरे मामले में संतानविहीन दंपती की मौत के बाद पति की बहन ने संपत्ति पर दावा ठोका। इन मामलों में याचिकाकर्ताओं का कहना था कि यह प्रावधान महिलाओं के मायके वालों के प्रति भेदभाव करता है और इसे हटाया जाना चाहिए। वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने अदालत में दलील दी कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के कुछ प्रावधान महिलाओं के लिए भेदभावपूर्ण हैं। उन्होंने कहा कि केवल परंपराओं के आधार पर महिलाओं को समान अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता। वहीं केंद्र की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज ने अधिनियम का बचाव करते हुए कहा कि यह कानून सोच-समझकर बनाया गया है और याचिकाकर्ता समाज की परंपरागत संरचना को कमजोर करने का प्रयास कर रहे हैं।

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