Saturday, April, 19,2025

अदालतें राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकतीं: जगदीप धनखड़

नई दिल्ली: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने गुरुवार को न्यायपालिका पर तीखा प्रहार करते हुए कहा कि वह 'सुपर संसद' की भूमिका नहीं निभा सकती और उच्चतम न्यायालय लोकतांत्रिक संस्थाओं पर 'परमाणु मिसाइल' नहीं चला सकता। उन्होंने यह टिप्पणी राज्यसभा के प्रशिक्षुओं को संबोधित करते हुए की। धनखड़ ने हाल ही में उच्चतम न्यायालय द्वारा राष्ट्रपति के निर्णय पर समयसीमा निर्धारित करने को लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए गंभीर चुनौती बताया। उन्होंने अनुच्छेद 142 को 'न्यायपालिका को चौबीसों घंटे उपलब्ध परमाणु मिसाइल' बताते हुए कहा कि इसकी निरंतरता लोकतांत्रिक ताकतों पर भारी पड़ सकती है। उन्होंने कहा, 'हमारे पास न्यायाधीश हैं जो कानून बनाएंगे, कार्यपालिका का काम करेंगे और खुद को जवाबदेही से परे मानेंगे। यह स्थिति अस्वीकार्य है।'

न्यायपालिका अपने दायरे में रहकर काम करें

उपराष्ट्रपति ने आगाह किया कि न्यायपालिका को संविधान के अनुच्छेद 145 (3) के तहत ही संविधान की व्याख्या का अधिकार है, जिसमें पांच या अधिक न्यायाधीशों की पीठ आवश्यक होती है। धनखड़ ने यह भी कहा कि राष्ट्रपति का पद सर्वोच्च है और उसे निर्देश देना संवैधानिक मर्यादाओं का उल्लंघन है। उन्होंने शक्तियों के पृथक्करण की आवश्यकता को दोहराया और कहा कि जब जनता सरकार चुनती है, तो वही सरकार संसद और देश के प्रति जवाबदेह होती है, न कि न्यायपालिका। अंत में कहा कि विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका को अपने-अपने दायरे में रहकर काम करना चाहिए, ताकि लोकतंत्र मजबूत हो और टकराव की स्थिति से बचा जा सके।

जस्टिस वर्मा केस में FIR क्यों नहीं हुई?

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने एक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के घर से नकदी बरामद होने के बावजूद प्राथमिकी दर्ज न किए जाने पर कड़ी आपत्ति जताई है। उन्होंने कहा कि क्या न्यायाधीशों को कानून से परे किसी विशेष श्रेणी का दर्जा प्राप्त है? राज्यसभा प्रशिक्षुओं को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, 'अगर यह घटना किसी आम आदमी के घर होती, तो कानून की रफ्तार रॉकेट जैसी होती, लेकिन यहां तो बैलगाड़ी से भी धीमी है।' उन्होंने तीन सदस्यीय न्यायिक जांच समिति की वैधता पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि जांच कार्यपालिका का अधिकार क्षेत्र है। धनखड़ ने कहा कि पारदर्शिता ही किसी भी संस्था की ताकत है और अगर जांच से पूरी छूट दी जाए, तो वही संस्था पतन की ओर बढ़ती है। उन्होंने प्राथमिकी दर्ज न होने को लोकतंत्र के लिए चिंताजनक बताया और स्पष्ट किया कि संविधान के अनुसार केवल राष्ट्रपति और राज्यपाल को अभियोजन से छूट है।

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