Saturday, April, 19,2025

फर्स्ट इंडिया OTT प्लस पर ऐतिहासिक 'धरोहर यात्रा'

जयपुर: जब भी हम धरोहरों की बात करते हैं राजस्थान का जिक्र अपने आप ही बातचीत का हिस्सा बन जाता है। इसकी रेत में इतिहास की गूंज है। हवाओं में वीरता की कहानियां और स्थापत्य में एक बेमिसाल शान है। देश-दुनिया को प्रदेश की इन अद्भुत और ऐतिहासिक धरोहरों की मनोरंजक यात्रा, वो भी घर बैठे कराने के लिए फर्स्ट इंडिया ओटीटी प्लस एक ट्रेवल शो लेकर आया है। इस शो को डिजाइन किया है फर्स्ट इंडिया न्यूज चैनल के सीईओ और मैनेजिंग एडिटर पवन अरोड़ा ने। बता दें कि फर्स्ट इंडिया न्यूज देश का पहला ऐसा न्यूज चैनल है, जिसने अपना खुद का ओटीटी लॉन्च किया है। शुक्रवार को विश्व धरोहर दिवस है। इस मौके पर हम फर्स्ट इंडिया ओटीटी प्लस के इस शो के जरिए आपको राजस्थान की उन ऐतिहासिक धरोहरों की यात्रा पर लिए चलते हैं, जिन्हें यूनेस्को ने विश्व धरोहर का दर्जा दिया है।

गुलाबी नगरी, जो इतिहास को आज से जोड़ती है

2019 में जब जयपुर को यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर शहर का दर्जा मिला तो यह महज एक प्रमाणपत्र नहीं था। यह जयपुर की जीवनशैली, उसकी सुंदरता और उसके आत्मविश्वास की स्वीकृति थी। यह शहर सिर्फ महलों और बाजारों का मेल नहीं यह एक सोच है, एक अनुभूति है, जहां परंपरा और आधुनिकता हाथ थाम कर चलती हैं।

केवलादेव... जहां पंखों से लिखी जाती हैं कविताएं

इतिहास केवल पत्थरों में नहीं, बल्कि प्रकृति की गोद में भी सहेजा गया है। केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान भरतपुर एक ऐसी जगह है, जहां पक्षियों की चहचहाहट आपको एक और ही दुनिया में ले जाती है। यहां हर सर्दी में साइबेरिया जैसे देशों से पक्षी आते हैं और इस जगह को जीवन से भर देते हैं।

किले, जहां पत्थरों में बसी वीरता की कहानियां

राजस्थान की धरती पर ऐसे छह किले हैं, जो न केवल स्थापत्य, बल्कि साहस और आत्मबल की मिसाल हैं। चित्तौड़गढ़, जहां रानी पद्मिनी का जौहर आज भी हर दीवार पर गूंजता है। कुंभलगढ़, महाराणा प्रताप की जन्मस्थली, जिसकी 36 किलोमीटर लंबी दीवारें आज भी दुश्मन को चुनौती देती हैं। आमेर अपनी भव्यता और शीश महल के लिए प्रसिद्ध है। जैसलमेर सुनहरी रेत की गोद में बसा किला। रणथंभौर, जहां बाघ और इतिहास एक साथ सांस लेते हैं और गागरोन जो चारों ओर से पानी से घिरा है, रणनीति और सुंदरता का अनुपम संगम है।

जंतर मंतर... जहां विज्ञान पत्थर में ढलता है

जब राजा खगोलशास्त्री बनते हैं, तो जन्म होता है ऐसे अजूबे का। जंतर मंतर, 18वीं सदी में महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय द्वारा निर्मित, आज भी समय की सटीक गणना करता है। यह वेधशाला पत्थरों से बनी जरूर है, पर इसका ज्ञान समय और आकाश से जुड़ा है और यही इसे अद्वितीय बनाता है।

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